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गाथा ! ३२९-३३२ ] सत्तमो महाहियारो
[ ३२९ सूर्य के तृतीय पथमें स्थित होनेपर मेरु आदि परिधियोंमें ताप-क्षेत्रका प्रमाण
णवय-सहस्सा चउस्सयाणि बावण्य-जोयणाणि कला । चउहतरि-मेत्ताओ, तदिय • पहक्कम्मि मंदरे तानो ॥३२६।।
६४५२ ! १४. अर्थ-(सूर्यके ) तृतीय मार्ग में स्थित होनेपर सुमेरु पर्वतके ऊपर ताप-क्षेत्रका प्रमाण नौ हजार चार सौ बावन योजन और चौहत्तर कला प्रमाण अधिक है ।।३२९॥ ( मेरु परिधि – 113 xty:=६४५२६६ योजन तापक्षेत्र है ।
तिय-तिय-एक्क-ति-पंचा, अंक-कमे पंच-सस-छ-दुग-कला। अद-दु-णय-दुग-भजिदा, तावो खेमाए तदिय - पह - सूरे ॥३३०॥
५३१३३ । ३ । अर्थ (सूर्यके ) तृतीय मार्ग में स्थित होनेपर क्षेमा नगरी में तापका प्रमाण तीन, तीन, एक, तीन और पांच इन अंकोंके क्रमसे अर्थात तिरेपन हजार एक सौ तेतीस योजन और दो हजार नौ सौ अट्ठाईससे भाजित दो हजार छह सौ पचहत्तर कला है ।।३३०॥
(क्षेमाकी परिधि १७७७६०५= 12306)४ -१५१५२=५३१३३३११ योजन सूर्यके तृतीय पथ स्थित क्षेमानगरीके ताप क्षेत्रका प्रमाण ।
दुग-छ-दुग-प्रह-पंचा, अंक • कमे णव-बुगेक्क-सत्त-कला। ख-चउ-छ-चउ-इगि-भजिबा, तदिय-पहक्कम्मि खेमपुर-तायो ।॥३३॥
५८२६२ । । अर्थ-(सूर्यके ) तृतीय मार्ग में स्थित रहते क्षेमपुरीमें ताप-क्षेत्रका प्रमाण दो, छह, दो, आठ और पांच, इन अंकोंके क्रमसे अट्ठावन हजार दो सौ बासठ योजन और चौदह हजार छह सौ चालीससे भाजित सात हजार एक सौ उनतीस कला है ॥३३१।।
( क्षेमपुरीकी परिधि १९४९१६६ = १५५६३४७ ) x = "TE - ५८२६२१११ योजन ताप-क्षेत्र ।
दुग-प्र-छ-दुग-छक्का, अंक-कमे जोयणाणि अंसा य । पंचय-छ-अट्ठ-एक्का, तायो रिद्वान तबिय-पह-सूरे ॥३३२॥
६२६८२ । ।