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________________ ३२८ ] तिलोयपण्णत्ती द्वितीय पथकी बाह्य बोधोका ताप क्षेत्र - पणणउदि सहस्सा तिय-सयाणि बीसुत्तराणि जोयणया । छत्तीस-दु-सय-अंसा, बिदिय पहक्कस्मि अंत पह-तायो ॥ ३२६ ॥ ९५३२० । १३६ । [ गाथा : ३२६-३२८ अर्थ - (सूर्य) द्वितीय पथमें स्थित होनेपर अन्तिम पथमें तापका प्रमाण पंचानबै हजार तीन सौ बीस योजन और दो सौ छत्तीस भाग अधिक ( ९५३२०११ योजन ) है || ३२६ || सूर्यके द्वितीय पथ में स्थित होनेपर लवण समुद्रके छठे भाग में ताप-क्षेत्र - पंच- दुग- अट्ठ-सत्ता, पंचेक्कक वकमेरा जोयणया । सा णव दुग-सत्ता, बिडिय पहक्कम्मि लवण- छडू से ।। ३२७ ।। १५७८२५११६ ० प्र--सूर्यके द्वितीय पथ में स्थित होनेपर लवणसमुद्रके छठे भागमें ताप क्षेत्रका प्रमाण पाँच, दो, आठ, सात, पांच और एक इन अंकोंके क्रमसे अर्थात् एक लाख सत्तावन हजार आठ सौ पच्चीस योजन और सात सौ उनतीस भाग अधिक ( १५७८२५९६ योजन ) है ॥ ३२७॥ सूर्यके तृतीय पथमें स्थित होनेपर परिधियों में ताप - क्षेत्र प्राप्त करने की विधि इट्ट परिरय रासि सगवालम्भहिय-पंच-सय-गुणिदं । भ-तिय-अटुक्क हिरे, तायो तवरणम्मि तदिय-मग्ग-ठिवे ॥ ३२८ ॥ - ५४०. 12301 - इष्ट परिधिको पाँच सौ सैंतालीस से गुणित करके उसमें एक हजार आठ सौ तीसका भाग देने पर जो लब्ध प्राप्त हो उतना सूर्यके तृतीय पथमें स्थित रहनेपर विवक्षित परिधि में ताप क्षेत्रका प्रमाण रहता है ।। ३२८ ।। विशेषार्थ - यहाँ सूर्य तृतीय पथमें स्थित है और इस पथमें दिनका प्रमाण (+ - - ) १७३१-२६४ मुहूर्त है । अतः विवक्षित परिधिके प्रभाण में '* मुहूतौंका गुणाकर ६० सुहूतों का भाग देने पर अर्थात् (X=TENS ) ५४७ का गुणाकर १८३० का भाग देनेपर ताप-क्षेत्र प्राप्त होता है ।
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
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