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________________ गाथा : ३२४-३२५ ] प्रथं - ( सूर्यके ) द्वितीय चौरानबे हजार तीन सी उनसठ है ।।३२३ ॥ सतमो महाहियारो [ ३२७ पथ में स्थित रहनेपर द्वितीय वीथीमें ताप क्षेत्रका प्रमाण भोजन और पाँच सौ उनसठ भाग अधिक होता विशेषार्थ - द्वितीय पथकी परिधि प्रमाण ३१५१०६१६ योजनमें से योग छोड़कर यो० का गुणा करनेपर यहाँ के तापक्षेत्रका प्रमाण प्राप्त होता है । यथा : ३१५१०६ यो०×१५ - ९४३५९३१ योजन परिधि है । = द्वितीय पथकी तृतीय वीथीका तापक्षेत्र चजण वि-सहस्सा तिय-सयाणि पर्णाट्टि जोयणा सा । afr-रू होंति तदो, बिदिय पहक्कम्मितबिध-पह-तानी ॥ ३२४ ॥ ९४३६५ । ९१५ । एवं मम पहस्स वाइल्ल-पह परियंतं णदव्वं । अर्थ – (सूर्यके) द्वितीय पथमें स्थित रहने पर तृतीय वीथीमें ताप क्षेत्रका प्रमाण चौरानवे हजार तीन सौ पैंसठ योजन और एक भाग प्रमाण अधिक ९४३६५३१४ यो० होता है || ३२४ ॥ इसप्रकार मध्यम पथके आदि पथ पर्यन्त ले जाना चाहिए । द्वितीय पथकी मध्यम वीथीका ताप क्षेत्र सरा-तिय-टु- चउणव-संक-बकमेण जोयणाणि श्रंसा । तेरी चारि-सया, विडिय-पहक्कम्मि मञ्झ-पह तावी ।।३२५।। ९४८३७ । ४१३ । एवं बाहिर यह हेट्टिम - पहंतं वव्थं । प्र - ( सूर्यके ) द्वितीय मार्गमें स्थित रहनेपर मध्यम पथमें तापका प्रमाण सात, तीन, माठ, चार और नौ, इन अंकोंके क्रमसे अर्थात् चौरानबे हजार आठ सौ सैंतीस योजन और चार सो रानवे भाग अधिक ९४८३७६योजन होता है ।। ३२५३॥ इसप्रकार बाह्य पथके अधस्तन पथ तक ले जाना चाहिए ।
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
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