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तिलोयपण्णत्ती
[ गाथा : ३२१-३२३ अर्थ---औषधिपुरके परिणधिभागमें ताप-क्षेत्रका प्रमाण पाठ, दो, नौ, एक और आठ, इन अंकोंके क्रमसे अर्थात् इक्यासी हजार नौ सौ अट्ठाईस योजन और दो सौ पन्द्रह भाग अधिक होता है ॥३२०।।
( औषधिपुरकी परिधि – २७३५९१३ = २१६६७३५) x == ५ =८१९२८। यो तापक्षेत्रका प्रमाण है ।
छ-च्छक्क-गयण-सत्ता, अटुक-कमेग जोयणागि कला। एक्कोणत्तीस - मेत्ता, ताघ - खिदी पुंडरिगिणिए ॥३२१।।
८७०६६ । । अर्थ-पुण्डरी किरणी नगरीमें ताप-क्षेत्रका प्रमाण छह, छह, शून्य, सात और आठ, इन अंकोंके क्रमसे अर्थात् सतासी हजार छयासठ योजन और उनतीस कला प्रमाण होता है ।। ३२१॥
{पुण्डरीकिणीपुरकी परिधि - २९०७४९५ = २33948 ) x 1 = HA५. -=८७०६६१- योजन ताप-क्षेत्रका प्रमाण है। सूर्यके द्वितीय पथ स्थित होनेपर अभ्यन्तर ( प्रथम ) वीथीमें ताप क्षेत्रका प्रमाण
चउ-पंच-ति-चउ-णवया, अंक-कमे छक्क-सत्त-चउ-अंसा । पंचेषक-रणव-हिदायो, बिविय-पहपकम्मि पढम-पाह तायो ॥३२२॥
९४३५४ II अयं-द्वितीय पथ स्थित सूर्यका तापक्षेत्र प्रथम ( अभ्यन्तर ) यीथीमें चार, पाँच, तीन, चार और नी, इन अंकोंके क्रमसे अर्थात् चौरानबे हजार तीन सौ चौवन योजन और नौ सौ पम्बहसे भाजित चार सौ छयत्तर भाग अधिक होता है ||३२२॥
( अभ्यन्तर वीथीकी परिधि-३१५०८९) - ६४३५४१ योजन ताप-क्षेत्रका प्रमारा।
द्वितीय पथको द्वितीय वीथीका तापक्षेत्रघउ-णउदि-सहस्सा तिय-सयाणि उणसहि नोयरणा अंसा। उमसट्ठी पंच-सया, विविय-पहक्कम्मि बिडिय-पह-तावो ॥३२३॥
९४३५९ । ५७६।