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________________ ३२४ 1 तिलोयपण्णसी [ गाथा : ३१४-३१६ प्रर्य-सूर्यके द्वितीय पथमें स्थित रहनेपर मेरु पर्वतके ऊपर ताप क्षेत्रका प्रमाण नौ हजार चार सौ उनहत्तर योजन और दो सौ ते रानबै भाग अधिक है ।।३१३।। मेरु परिधि 31932x32-९४६९१ तापक्षेत्र। इगि-ति-व-ति-पंच-कमसो, जोयणया तह कलायो सग-तीसं । सग-सय बत्तीस-हिवा, खेमा - पणिधीए ताव - खिदो ॥३१४॥ ५३२३१ । ७१। प्रयं-सेमा नगरीके प्रणिधिभागमें एक, तीन, दो, तीन और पांच, इन अंकोंके क्रमसे प्रर्थात तिरेपन हजार वो सौ इकतीस योजन और सातसो बत्तीससे भाजित सैंतीस कला अधिक है ।।३१४॥ ( क्षेमा-परिधि १७७७६०३== १४३४६५ )xy= १ = ५३२३१/- तापक्षेत्रका प्रमाण । अढ-छ-ति-अटु-पंचा, अंक-कमे णव-परण-छ-तिय अंसा । पभ-छ-उछत्तिय-भजिवा, खेमपुरी-पणिधि-ताप-खिदो ॥३१॥ ५८३६८ । १५ । अर्थ-क्षेमपुरीके प्रणिधिभागमें ताप-क्षेत्रका प्रमाण पाठ, छह, तीन, आठ और पांच, इन अंकोंके क्रमसे अर्थात् अट्ठावन हजार तीन सौ प्रड्सठ योजन और तीन हजार छह सौ साठसे भाजित तीन हजार छह सौ उनसठ भाग अधिक है ॥३१॥ (क्षेमपुरीकी परिधि १६४६१६=१५५६३४७) x = ५८३६८१११ योजन ताप क्षेत्र। छण्णव-सग-दुग-छक्का, अंक-कमे पंच-तिय-छ-दोणि कमे। पभ-छ पत्तिय-हरिया, रिट्ठा - पणिधीए ताव - खिदी ॥३१६॥ ६२५६६ । । प्रयं-अरिष्टा नगरीके प्ररिणधि-भागमें ताप-क्षेत्रका प्रमाण छह, नो, सात, दो और छह इन अंकोंके क्रमसे अर्थात् बासठ हजार सात सौ छ्यान योजन और तीन हजार छह सौ साठसे भाजित दो हजार छह सौ पैंतीस भाग अधिक है ॥३१६॥ (अरिष्टा की परिधि २०९७०४६ = ११.५५३५) x = २२६ ६२७९६१ यो० ताप-क्षेत्र है।
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
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