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गाथा : ३०४-३०७ ]
सत्तमो महाहियारो बासीदि-सहस्साणि, सत्तचरि जोयगाणि णव अंसा । सोलस-भजिदा ताओ, 'प्रोसहि-गयरस्स पणिधीए ॥३०४।।
८२०७७ 1 । अर्थ-प्रौषधिपुरके प्ररिए धिभागमें तापक्षेत्र बयासी हजार सततर योजन और सोलहसे भाजित नौ भाग अधिक है ।।३०४।।
विशेषार्थ-२७३५९१६ - २१६६४३५४८२०७७६६ यो औषधिपुरमें तापक्षेत्रका प्रमाण ।
सत्तासीवि-सहस्सा, बु-सया चवीस जोयणा अंसा। एक्कत्तरि सोहि-हिदा, ताव-खिदो पुडरोगिणी -णयरे ॥३०५।।
१७२२४ । । प्रयं-पुण्डरीकिणी नगरमें तापक्षेत्र सतासी हजार दो सौ चौबीस योजन और अस्सीसे भाजित इकहत्तर भाग अधिक है ॥३०५।।
विशेषार्थ -२९०७४९३ = २५५१४६७४-८७२२४६१ योजन पुण्डरीकिणीपुरके ताप क्षेत्रका प्रमाण।
घउणउदि-सहस्सा पण-सयाणि छब्बीस जोयणा सत्ता। अंसा बसेहि भजिदा, पठम - पहे ताय-खिदि-परिही ॥३०६॥
१४५२६ । । प्रथं-प्रथम पथमें ताप क्षेत्रकी परिधि चौरान हजार पाँच सौ छब्बीस योजन और दससे माजित चार माग अधिक है ।।३०६।।
विशेषार्थ-(प्रथम पथको अभ्यन्तर परिधि ३१५०८६ यो० )x; ६४५२६यो. तापक्षेत्रकी परिधिका प्रमाण ।
द्वितीय पयमें तापक्षेत्रको परिधिचउणावि-सहस्सा, पणु-सयाणि इगितीस जोयणा अंसा । चत्तारो पंच - हिता, विविय • पहे ताव-खिदि-परिही ॥३०७॥
१. द. य. क. ज. होदि । २. व. ब. पुरगिणी, क. ज. पुरिंगिणी।