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________________ गाथा।२९१ [ ३१७ सत्तमो महाहियारो बाहिर - पहादु पत्ते, मग्गं अम्भंतरं सहस्सकरे । पुधावण्णिव - खेवं, पाखेवसु दिरण - पमाणम्मि ॥२६१॥ प्रथं सूर्य के बाह्य पश्रसे अभ्यन्तर मार्गको प्राप्त होनेपर पूर्व-वर्णित क्रमसे दिन-प्रमाणमें उत्तरोत्तर इस वृद्धि-प्रमाणको मिलाना चाहिए ।।२९१।। इय बासर-रत्तीओ, एक्कस्स रविस्स मदि-विसेसेण । एदाणं दुगुणाश्रो, हवंति दोण्हं विरिणाणं ॥२६२।। । दिण-रत्तीणं भेदं समत। अर्थ- इसप्रकार एक सूर्यको गति-विशेषसे उपयुक्त प्रकार दिन-रात हुग्रा करते हैं । इनको दुगुना करनेपर दोनों स्योको गति-विशेषसे होने वाले दिन-रात का प्रमाण प्राप्त होता है ।।२९२।। दिन-रातके भेदका कथन समाप्त हुआ। on दुर ITIE RUR / incli ३ RE -AS-IPil: 4... Yatra KALA ६२/tam - Rasik प्रतिज्ञा एत्तो बासर-पाहुण्ण, गमण-विसेसेण मणव-लोम्मि । जे प्रावव - तम - खेत्ता, जादा ताणि परूथेमो ॥२६३॥ अर्थ-अब यहाँसे आगे वासरप्रभु ( सूर्य ) के गमन विशेषसे जो मनुष्यलोकमें आतप एवं तम क्षेत्र हुए हैं उनका प्ररूपण करते हैं ।।२९३।।
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
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