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गाथा ! २८३-२८७ ] सत्तमो महाहियारो
[ ३१५ ( १८ - १२): ( १८४ - १) या मुहूर्त । ४८ मिनिट का १ मुहूर्त होता है अतः मुहूर्त में १ मिनिट ३४३१ सेकेण्ड की वृद्धि या हानि होती है ।
सूर्यके द्वितीयादि पथोंमें स्थित रहते दिन-रात्रिका प्रमाणविदिय-पह-द्विद-सूरे, सत्तरस-मुहत्तयाणि होदि दिणं । उणसट्टि - कलम्भहियं, छक्कोणिय-दु-सय-परिहीसु॥२८३॥
अर्थ-सूर्यके द्वितीय पथमें स्थित रहनेपर छह कम दो सौ अर्थात् १६४ परिधियोंमें दिन का प्रमाण सत्तरह मुहूर्त और उनसठ कला अधिक ( १७F ) होता है ।।२८३॥
बारस-मुहत्तयाणि, दोषिण कलाओ णिसाए परिमाणं । बिदिय-पह-दि-सरे, तेत्तिय - मेत्तासु परिहीसु ॥२४॥
प्रर्प-सूर्य के द्वितीय मार्ग में स्थित रहनेपरः उतनी ( १९४) ही परिधियोंमें रात्रिका प्रमाण बारह मुहूर्त और दो कला ( १२ मुहूर्त ) होता है ॥२४॥
तदिय-पह-ट्टिव-तवणे, सत्तरस-मुहत्तयाणि होदि दिएं। सत्तावण कलाप्रो, तेत्तिय - मेत्तासु परिहीसु॥२५॥
प्रयं-सूर्यके तृतीयमार्गमें स्थित रहनेपर उतनी ही परिधियोंमें दिनका प्रमाण सत्तरह मुहूर्त और सत्तावन कला ( १७२५ मुहूर्त ) होता है ॥२८५।।।
बारस-मुहत्तयाणि, चत्तारि कलामो रति-परिमाणं । तपरिहोसु सूरे, प्रदेि 'तिदिय - मागम्मि ॥२८६।।
अर्थ- सूर्यके तृतीय मार्गमें स्थित रहनेपर उन परिधियोंमें रात्रिका प्रमाण बारह मुहूर्त और चार कला अधिक ( १ मु०) होता है ।।२८६॥
सत्तरस-मुहलाई, पंचावण्णा कलाश्रो परिमाणं । दिवसस्स तुरिम-मग्ग-छिदम्मि तिव्वंसु - जिंबम्मि ॥२८॥
१.प. दिक्यि
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