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गाथा । २६१-२६४ ] सत्तमो महाहियारो
[ ३०६ ३१५१०६३ + १७३६३१५१२४६२ योजन ।
एक्कत्तालेषक-सयं, पणरस-सहस्स जोयण ति-लक्खा। तेवण्ण • कला तुरिमे, पहम्मि परिहीए परिमाणं ॥२६१॥
___ ३१५१४१ १ ५३। अर्थ चतुर्थपथमें परिधिका प्रमाण तीन लाख पन्द्रह हजार एक सौ इकतालीस योजन और तिरेपन कला ( ३१५१४१३३ यो० ) है ।।२६१।। ३१५.१२४११+१ =३१५१४१५१ योजन है ।
उपसद्वि-जदेषक-सयं, पण्णरस-सहस्स जोयण ति-लक्खा। इगिसट्ठी - पविहत्ता, तीस - कला पंचम - पहे सा ॥२६२॥
३१५१५९ । । प्रयं-पंचम पथमें वह परिधि तीन लाख पन्द्रह हजार एक सो उनसठ योजन और इकसठ से विभक्त तीस कला अधिक है ।।२६२॥ ३१५१४११+१७.६१५१५६६६ योजन !
एवं पुबुप्पण्णे, परिहि-खेव 'मेलिदूण उवरि-उधार ।
परिहि-पमाणं जाव - बुचरिम - परिहिं ति दध्वं ॥२६॥ अर्थ – इसप्रकार पूर्वोत्पन्न परिधि-प्रमाणमें परिधिक्षेप मिलाकर द्विचरम परिधि पर्यन्त प्रागे-आगे परिधि प्रमाण जानना चाहिए ।।२६३।।
सूर्यके बाह्य-पथका परिधि प्रमाणचोहस-जुम-ति-सयाणि, प्रहरस-सहस्स जोयण ति-लक्खा । सूरस्स बाहिर • पहे, हवेदि परिहीए परिमाणं ॥२६४॥
३१८३१४ ।
अर्घ-सूर्यके बाह्य पथ में परिधिका प्रमाण तोन लाख अठारह हजार तीन सौ चौदह ( ३१८३१४ } योजन है ।।२६४।।
विशेषार्थ-सूर्यकी अन्तिम (बाह्य) वीथीकी परिधिका प्रमाण १३१५०८९+ (१७६x १८३) }= ३१८३१४ योजन है ।।
१. द. माण उवरिवरि, ब, माण उबरुवरि । २. ६, ब. क. ज सामादब्वं ।