SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 375
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गाथा : २५४-२५६ ] सत्तमो महायिारो [ ३०७ विशेषार्थ-दो क्षेत्रों एवं पंकवती और गभीरमालिनी नदियोंकी परिधि, पूर्व प्रमाण में मिसा देनेपर (२५८८०५१ + १४७८६ यो०)=२७३५९१६ योजन उपर्युक्त परिधिका प्रमाण प्राप्त होता है। विजयपुरी और पुण्डरी किणीको परिधिणव-चउ-सत्त-णहाई, णवय-दुगा जोयणाणि अंक-कमे । पंच-कलाप्रो परिही, विजयपुरी- पुरीगिरणीणं पि ॥२५४॥ २९०७४६ 1:। अर्थ - विजयपुरी और पुण्डरी किणी नगरियोंकी परिधि नी, चार, सात, शून्य, नौ और दो, इन अंकोंके क्रमसे अर्थात् २९०७४६ योजन और पौच कला प्रमाण है ॥२५४।। विशेषार्थ-दो क्षेत्रों और चन्द्रगिरि एवं एक शैल वक्षारोंकी परिधि, पूर्व परिधिके प्रमाणमें मिला देनेपर ( २७३५९१ + १७१५७३ )-२६०७४९३ योजन उपयुक्त परिधिका प्रमाण प्राप्त होता है। सूर्यकी अभ्यन्तर वीथीको परिधितिय-जोयण-लक्खाणि, पण्णरस-सहस्सयाणि उणणउदी। सयभंतर - मग्गे, परिरय - रासिस्स परिमारणं ॥२५५।। ३१५०८९। अर्थ -सूर्यके सब मार्गी मेंसे अभ्यन्तर मार्गमें परिधि-राशिका प्रमाण तीन लाख पन्द्रह हजार नवासी ( ३१५०८६ ) योजन है ।।२५५।। विशेषार्थ -जम्बूद्वीपमें सूर्यके चारक्षेत्रका प्रमाण १८० योजन है। दोनों पार्श्वभागोंका ( १८०४२)-३६० योजन । (ज० का वि० १००००० यो०) --- ३६० यो०-६६६४० योजन सूर्यको प्रथम बोथीका व्यास है और इसको परिधिV { ६६६४०x१०-३१५०८६ योजन है । जो शेष बचे थे छोड़ दिए गये हैं । सूर्य के परिधि प्रक्षेपका प्रमाणसेसाणं मग्गाणं, परिही परिमाण-जाणण-णिमित्तं । परिहि खेबं वोच्छं, गुरूबदेसाणुसारेणं ॥२५६।।
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy