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गाथा : २४९-२५० ] सत्तमो महाहियारो
[ ३०५ अर्थ –क्षेमपुरी और अयोध्या नगरीके प्ररिण विभागमें परिधिका प्रमाण पाठ. एक, नौ चार, नौ और एक इन अंकोंके क्रमसे अर्थात् १९४९१८ योजन और तीन कला अधिक है ।।२४८।।
विशेषार्थ-क्षेमपुरी और अयोध्या नगरीके पूर्व ५००-५०० योजन विस्तार वाले चित्रकूट एवं देवमाल नामक दो वक्षार पर्वत हैं । पूर्व परिधिमें दो क्षेत्रों और इन दो पर्वतोंकी परिधि मिला देनेसे क्षेमपुरी एवं अयोध्याके प्रणिधिभागोंकी परिधिका प्रमाण प्राप्त होता है। यथा
१००० + ४४२५१ यो०-५४२५१ योजन ।
(५४२५३) x १०=१६' = १७१५७६ योजन । (पूर्व परिधि १७७७६०५ यो०)+ १७१५७१ = १९४९१५६ योजन ।
खड्गपुरी और अरिष्टाके प्रणिधिभागोंकी परिधिचउ-गयण-सत्त-णव-गह-दुगाण अंक-क्कमेण जोयणया। ति-कलाओ खम्गरिट्टा पणिधीए परिहि परिमाणं ॥२४६॥
२०९७०४।। अर्थ-खड्गपुरी और अरिष्टा नगरियोंके प्रणिधिभागमें परिधिका प्रमाण चार, शून्य, सात, नौ, शून्य और दो, इन अंकोंके क्रमसे अर्थात् २०६७०४ योजन और तीन कला अधिक है ।।२४६।।
विशेषार्थ-खड्गपुरी और अरिष्टाके पूर्व में १२५-१२५ योजन विस्तार वाली अमिमालिनी और द्रवती विभंगा नदियाँ हैं । पूर्व परिधिमें दो क्षेत्रों और इन दो नदियों की परिधि मिला देने पर उपयुक्त प्रमाण प्राप्त होता है। यथा
४४२५४ + २५० = ४६७५३ = ? यो० । Virg3}. x १० = ५६१४४ = १४७८६ योजन । १९४६१८३ + १४७८४ =२०९७०४३ योजन ।
चक्रपुरो और अरिष्टपुरीके प्रणिधिभागोंकी परिधिदुग-छक्क-अटु-छक्का, दुग-युग-अंक-एकमेण जोयणया। एक्क-कला परिमाणं, चक्कारिद्वाण पणिधि-परिहीए ॥२५०॥
२२६८६२ ।। - अर्थ-चक्रपुरी और अरिष्टपरीके प्ररिंग विभागमें परिधिका प्रमाण दो, छह, पाठ, छह, दो और दो इन अंकोंके क्रमसे अर्थात् २२६८६२ योजन और एक कला अधिक है ।।२५०।।