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तिलोयपण्णत्ती
[ गाथा : २४७-२४८ मधं-सुमेरु पर्वतको परिधि-राशि इकतीस हजार छह सौ बाईस ( ३१६२२) योजन प्रमाण है ॥२४६।।
विशेषार्थ- मेरु विष्कम्भ १०००० योजन है और इसकी परिधि ३१६२२ योजन है। वर्गमूल निकालने पर जो अवशेष बचे हैं वे छोड़ दिये गये हैं।
क्षेमा और अवध्या के प्रणिधि भागोंकी परिधिणभ-छक्क-सत्त-सत्ता, सत्तेक्कंक - कमेण जोयरगया। अट्ट-हिब'-पंच भागा, खेमावझाण पणिधि-परिहि त्ति ।।२४७॥
१७७७६० ।।। अर्थ-क्षेमा और अवध्या नगरीके परिणधिभागोंमें परिधि शून्य, छह, सात, सात, सात और एक, इन अंकोंके क्रमसे अर्थात् १७७७६० योजन और एक योजनके पाठ भागोंमेंसे पाच भाग प्रमाण है ।।२४७॥
विशेषार्थ -जम्बूद्वीप स्थित सुमेरु पर्वतका तल विस्तार १०००० यो०, सुमेरुके दोनों ओर स्थित भद्रशाल वनोंका विस्तार ( २२०००४ २ )=४४००० यो० और इसके आगे कच्छा, सुकच्छा आदि ३२ देशोंमें से प्रत्येक देशका विस्तार २२१२५ योजन है । गाथामें कच्छादेश स्थित क्षेमा नगरी और गन्धमालिनी देश स्थित अवध्या नगरीके परिणविभाग पर्यन्तकी परिधि निकाली है; जो इसप्रकार है
१०००० +४४००० + २२१२६ यो = ५६२१२६ यो । चतुर्थाधिकार गाथा E के नियमानुसार इसकी परिधिV(५६२१२३)२-१० = १४२३०८५ - १७७७६०५ योजन प्राप्त होती है।
यहाँ एवं आगे भी सर्वत्र वर्गमूल निकालनेके उपरान्त जो राशि शेष रहती ( बचती है वह छोड़ दी गई है।
क्षेमपुरी और अयोध्याके प्रणिधिभागमें परिधिका प्रमाणअक्क-एच-चउक्का गवेक-अंक-कमेण जोयणया । सि-कलामओ परिहि संखा, खेमपुरी-यउज्माण मझ-पणिषीए ॥२४॥
१९४९१८ ।।।
१ द.क. क. ज. हिदा-पंचभागे ।