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________________ गाया : २४४ - २४६ ] = अथवा... - वराशिमेंसे सूर्य के मार्गान्तरालोंको घटाकर शेषमें रविबिम्ब ( विस्तार ) का भाग देनेपर बानबे के दूने अर्थात् एक सौ चौरासी सूर्यमार्गीका प्रमाण प्राप्त होता है || २४३ || विशेषार्थ - ( वराशि ३१७८ ) -- २३६२० ११ *** १८४ बीथियाँ ( सूर्य की ) हैं । चारक्षेत्रका प्रमाण प्राप्त करनेकी विधि सतमो महाहियारो | १२ । १८४ । ' विणवइ-पह सूचि-चए', तिय-सीदी-जूद सण संगुणिदे | होबि हु चारकखेत्तं बिंबूणं तज्जुदं सयलं ।। २४४ ।। t - = १३२७० । १८३ । लद्ध ५१० । अर्थ – सूर्य की पथ सूची- वृद्धिको एक सौ तेरासीसे गुणा करने पर जो ( राशि ) प्राप्त हो उतना बिम्ब विस्तारसे रहित सूर्यका चारक्षेत्र होता है। इसमें बिम्ब विस्तार मिला देनेपर समस्त चार क्षेत्रका प्रमाण प्राप्त होता है || २४४॥ 1 दिन-रय णि जाणण मंदर परिहि प्हुदि, विशेषार्य -- ( सूर्य पथ सूची वृद्धि ३° यो० ) x १८३ = 31110 - ५१० यो० बिम्ब रहित चारक्षेत्र; ५१० + ५१०६ यो० समस्त चारक्षेत्रका प्रमाण । प्रतिज्ञा - श्रावव तिमिराण काल-परिमाणं । [ ३०३ चडणवदि सयं परूवेमो ॥ २४५ ॥ - १६४ । अर्थ - ( अब ) दिन और रात्रिको जानने के लिए आतप और तिमिरके काल प्रमाणका एवं मेरु परिधि आदि एक सी चौरानबे ( १९४ ) परिधियोंका प्ररूपण करते हैं ।। २४५ ।। मेरु- परिधिका प्रमाण एक्कत्तीस - सहस्सा, जोयणया इस्सयापि बाबीसं । मंदरगिरिव परिरय रासिस्स हवेदि परिमाणं ॥ २४६ ॥ ३१६२२ । १६.क. १८०२ । १४८ । २. ६. ब. क. ज. बीए ।
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
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