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________________ [३८] यहाँ Dn-२-D, है तथा Da= १+२ [२+२+....+२-२] है । मर्थात्, Dna= [ १+२ (२१-१-२) ] D, योजन है । . २ Dr-Daa - २"D,+[-१-२+४] D=D...१००००० योजन गाथा ५/२४६-२४७ : प्रतीकरूपेण, ५०.०० योजन + Daa = Dab+[Dn-२०००००] गाथा ५/२४८ प्रतीकरूप से, उक्त वृद्धिका प्रमाण=11 (Drb)-Dra }= १६ लाख योजन है । गापा ५/२५० प्रतीक रूप से, वणित वृद्धि का प्रमाण= (३D0-३००००.)- {sp - ३००००० गाथा ५/२५१ प्रतीक रूप से वरिणत वृद्धि वरिणत वृद्धियों के प्रकरण में व्यावहारिक उपयोग स्पष्ट नहीं है। द्वीप और समुद्रों के विस्तार १, २, ४, ८,...........अर्थात् गुणोत्तर श्रेणी में दिये गये हैं । तथा द्वीपों के विस्तार १,४, १६, ६४............भी गुणोत्तर श्रेणी में हैं जिसमें साधारण निष्पत्ति ४ है। इन्हीं के विषय में गुणोत्तर रिण के योग निकालने के सूत्रों की सहायता से. भिन्न २ प्रकार की वृद्धियों का वर्णन दिया गया है। गाथा ५४२५२ चतुर्थ पक्ष की वणित वृद्धि को यदि Ka माना जाए तो इच्छित वृद्धि वाले (ग) समुद्र से, पहिले के समस्त समुद्रों सम्बन्धी विस्तार का प्रमाण= =२०००० होता है। गाथा ५/२६१ जैसाकि पूर्व में बतलाया जा चुका है, वें द्वीप या समुद्र का क्षेत्रफल 1. { (Dab) २ - (Dna) २ } है। इसी सूत्र के प्राधार पर विविध क्षेत्रफलों के अरुपबहुत्व का निरूपण किया गया है। यहाँ वणित क्षेत्रफल वृद्धिका प्रमाण _३ (Do - १०००००) ४४ Da है. (१०००००)
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
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