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________________ ३०० ] तिलोय पण्णत्ती बाहिर बहादु श्रादिम-मग्गे तवणस्स श्रागमण-काले । पुध्वं खेवं सोह, दुरिम-पह पहुबि जाव पढम-पहं ॥ २३३ ॥ अर्थ- सूर्यके बाह्य मार्गसे प्रथम मार्गकी ओर आते समय पूर्व वृद्धिको कम करनेपर द्विचरम पथसे लेकर प्रथम पथ पर्यन्तका अन्तराल प्रमाण जानना चाहिए ॥२३३॥ दोनों सूर्यका पारस्परिक अन्तर अन्तराल । [ गाथा : २३३ - २३७ सहि जुदा ति सारिंग, सोहज्जसु जंबुदीव-दम्मि | जं सेसं पढम पहे दोन्हं दुमणीण विचचाल ॥ २३४ ॥ - पथ ( स्थित ) दोनों सूर्योंके बीच अन्तराल रहता है ||२३४|| विशेषार्थ - जम्बूद्वीपका विस्तार १००००० यो० अर्थ- जम्बूद्वीप के विस्तार डीसी साठ योजन कम करने पर जो शेष रहे उतना प्रथम - - ( १८०x२ ) = ९९६४० यो० नवउदि सहस्सा छस्सयाणि चउदाल- जोयणाणि पि । तवरणाणि श्रावाहा, अम्भंतर मंडल ठिवाणं ॥ २३५ ॥ । ९९६४० । अर्थ - श्रभ्यन्तर मण्डलमें स्थित दोनों सूर्यका अन्तराल निन्यानबं हजार छह सौ चालीस ( १९६४० ) योजन प्रभार है ।। २३५ ।। सूर्योकी अन्तराल वृद्धिका प्रमाण विणव- पह-सूचि-चए, दोस' गुणिवे हवेदि भाणूगं । श्रबाहाए बड्ढी, जोयरपया पंच पंचतीस - कला ॥ २३६ ॥ । ५ । ३१ । अर्थ- सूर्य की पथ सूची- वृद्धिको दो से गुणित करने पर सूर्योकी अन्तराल-वृद्धिका प्रमाण प्राप्त होता है जो पाँच योजन और पैंतीस कला अधिक है ।। २३६ ।। विशेषार्थ - सूर्य - पथ- सूची ४ ४ २ प्रमाण है । - या योजन अन्तराल वृद्धिका ALBA सूर्यका अभीष्ट अन्तराल प्राप्त करनेका विधान - रूघोणं इठ - पहं, गुणिवणं मग्ग सूइ वड्डीए । पढमामाहामिलियं वासरणाहाण इट्ठ विश्वचालं ॥ २३७॥ 4 ,
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
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