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तिलोय पण्णत्ती
बाहिर बहादु श्रादिम-मग्गे तवणस्स श्रागमण-काले । पुध्वं खेवं सोह, दुरिम-पह पहुबि जाव पढम-पहं ॥ २३३ ॥
अर्थ- सूर्यके बाह्य मार्गसे प्रथम मार्गकी ओर आते समय पूर्व वृद्धिको कम करनेपर द्विचरम पथसे लेकर प्रथम पथ पर्यन्तका अन्तराल प्रमाण जानना चाहिए ॥२३३॥ दोनों सूर्यका पारस्परिक अन्तर
अन्तराल ।
[ गाथा : २३३ - २३७
सहि जुदा ति सारिंग, सोहज्जसु जंबुदीव-दम्मि |
जं सेसं पढम पहे दोन्हं दुमणीण विचचाल ॥ २३४ ॥
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पथ ( स्थित ) दोनों सूर्योंके बीच अन्तराल रहता है ||२३४||
विशेषार्थ - जम्बूद्वीपका विस्तार १००००० यो०
अर्थ- जम्बूद्वीप के विस्तार डीसी साठ योजन कम करने पर जो शेष रहे उतना प्रथम
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- ( १८०x२ ) = ९९६४० यो०
नवउदि सहस्सा छस्सयाणि चउदाल- जोयणाणि पि ।
तवरणाणि श्रावाहा, अम्भंतर मंडल ठिवाणं ॥ २३५ ॥ ।
९९६४० ।
अर्थ - श्रभ्यन्तर मण्डलमें स्थित दोनों सूर्यका अन्तराल निन्यानबं हजार छह सौ चालीस ( १९६४० ) योजन प्रभार है ।। २३५ ।।
सूर्योकी अन्तराल वृद्धिका प्रमाण
विणव- पह-सूचि-चए, दोस' गुणिवे हवेदि भाणूगं ।
श्रबाहाए बड्ढी, जोयरपया पंच पंचतीस - कला ॥ २३६ ॥ ।
५ । ३१ ।
अर्थ- सूर्य की पथ सूची- वृद्धिको दो से गुणित करने पर सूर्योकी अन्तराल-वृद्धिका प्रमाण प्राप्त होता है जो पाँच योजन और पैंतीस कला अधिक है ।। २३६ ।।
विशेषार्थ - सूर्य - पथ- सूची ४ ४ २ प्रमाण है ।
- या योजन अन्तराल वृद्धिका
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सूर्यका अभीष्ट अन्तराल प्राप्त करनेका विधान
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रूघोणं इठ - पहं, गुणिवणं मग्ग सूइ वड्डीए । पढमामाहामिलियं वासरणाहाण इट्ठ विश्वचालं ॥ २३७॥
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