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सत्तम महाहियारो
चउदाल- सहस्सा अड-सयाणि पणुयोस जोयणाणि कला । पणुतीस तइज्ज पहे पतंग हेमद्दि विकचालं ॥ २३०॥
४४८२५ । ३१ ।
एवमादि- मज्झिम-प-परियंतं वेदव्यं ।
गाथा : २३० - २३२ ]
इसप्रकार श्रादि ( प्रथम पथ ) से लेकर मध्यम (
अयं - तृतीय पथ में सूर्य और सुवर्ण पर्वतके बीच चवालीस हजार आठ सौ पच्चीस योजन और पैंतीस कला ( ४४८०२५३३ यो० ) प्रमाण अन्तराल है ।। २३० ।।
मध्यम पथमें सूर्य और मेरुका अन्तर
पंचाल - सहस्सा, पणहतरि जोयणाणि श्रविरेका । मज्झिम-पह - ठिव-दिवमणि चामीयर सेल विश्वालं ।। २३१ ॥
४५०७५ ।
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एवं दुचरिम-मगंतं दव्वं ।
अर्थ - मध्यम पथमें स्थित सूर्य और सुवर्णशैल के बीचका अन्तराल कुछ अधिक पैंतालीस हजार पचहत्तर योजन है ॥२३१॥
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इसप्रकार द्विचरम मार्ग पर्यन्त ले जाना चाहिए ।
विशेषार्थ - मध्यम वीथीमें स्थित सूर्यका मेरु पर्वत से अन्तर प्रमाण ४४८२० + (Nx १३ ) = ४५०७५ योजन है ।
गाथा में अदिरेगा पद क्यों दिया गया है, यह समझमें नहीं आया । बाह्य पथ स्थित सूर्यका मेरुसे अन्तर
3 ) मार्ग पर्यन्त जानना चाहिए ।
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पणदाल सहस्साण, तिष्णि-सया तीस- जोयणायरिया । बाहिर पह र-पह-ठिद-वासरकर कंत्रण सेल विच्चालं ॥ २३२ ॥
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( ४५३३० ) योजन प्रमाण अन्तराल कहा गया है ।।२३२ ||
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यथा -- ४४८२०+ (४१५३ ) = ४५३३० योजन |
४५३३० ।
बाह्य पथ में स्थित सूर्य और सुवर्णशेलके बीच पैंतालीस हजार तीन सौ तीस