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________________ [ २९७ गाथा : २२३-२२५ ] सत्तमो महाहियारो सूर्य-पथोंके बीच अन्तरका प्रमाणदिवसयर - विन - चलमीनीसमाहिय - सएणं । घुवरासिस्स प मज्झ, सोहेज्जसु तत्थ अवसेसं ॥२२३॥ तेसीवि-जुद सदेणं, भजिदव्यं तम्मि होवि जं लद्ध। घोहिं पद्धि णादव्यं, तरणोणं लंघण - पमाणं ।।२२४।। अर्य-ध्र वराशिमेंसे एक सौ चौरासी ( १८४ ) से गुणित सूर्य-बिम्बका विस्तार घटा देनेपर जो शेष रहे उसमें एक सो तेरासीका भाग देनेपर जो लब्ध प्राप्त हो, उतना सूर्यों का प्रत्येक वीथीके प्रति लंघनका प्रमाण अर्थात् एक वीथीसे दूसरी वीथोके बोचका अन्तराल जानना चाहिए ।।२२३-२२४।। विशेषार्थ-ध्र वराशिका प्रमाण १५ ( ५१०१६) योजन, सूर्य-बिम्बका विस्तार योजन, सूर्यकी वीथियां १८४ और वीथियोंके अन्तराल १८३ हैं। सूर्यको एक वीथोका विस्तार यो० है तब १८४ वीथियोंका विस्तार कितना होगा? इसप्रकार राशिक करने पर ४१४= 4 योजन प्राप्त हुए । इसे ध्र बराशि ( चारक्षेत्र ) के प्रमाणमेंसे घटा देनेपर (१५-१६)=२२३१२ योजन १८४ गलियोंका अन्तराल प्राप्त होता है। १८४ गलियोंके अन्तराल १५३ ही होते हैं अतः सम्पूर्ण गलियोंके अन्तर-प्रमाणमें १८३ का भाग देनेपर एक गलीसे दूसरी गलीके बीचका अन्तर ( ३२१२६ : १८३ )-२ योजन प्राप्त होता है । सूर्य के प्रतिदिन गमनक्षेत्रका प्रमाणसम्मेत्तं पह-विच्चं, तं माणं दोणि जोयणा होति । तस्सि रवि - बिंब - जुदे, पह - सूचीयो विरिणवस्स ।।२२।। अर्थ-प्रत्येक वीथीके उतने अन्तरालका प्रमाण दो योजन है । जिसमें सूर्यबिम्बका विस्तार ( यो०) मिला देनेपर सूर्य के पथ-सूचीका प्रमाण २४६ योजन अथवा योजन होता है अर्थात् सूर्यको प्रतिदिन एक गली पार कर दूसरी गली में प्रवेश करने तक २१ योजन प्रमाण गमन करना पड़ता है ।।२२।। १. द. ब. क. ज..
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
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