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गाथा : २१५-२१८ ] सत्तमो महायिारो
[ २६५ मतान्तरसे कृष्ण एवं शुक्ल पक्ष होने के कारणप्रहवा ससहर-जिंबं, पण्णरस-दिणाइ तस्सहावेणं ।
कसरणाभं सुकलाभ, तेत्तियमेत्ताणि परिणमदि ॥२१५।।
अर्थ-अथवा, चन्द्र-बिम्ब अपने स्वभाव से ही पन्द्रह दिनोंतक कृष्ण कान्ति स्वरूप और इतने ही दिनों तक शुक्ल कान्ति स्वरूप परिणमता है ।।२१५।।
चन्द्र ग्रहणका कारण एवं कालपुह पुह ससि-बिवाणि, छम्मासेसु च पुण्णिमंतम्मि ।
छावंति पव्य - राहू, णियमेणं गदि - विसेसेहि ।।२१६।। अर्थ - पर्व-राह नियमसे गति-विशेषके कारण छह मासोंमें पूणिमाके अन्तमें पृथक्-पृथक् चन्द्र-बिम्बोंको आच्छादित करते हैं ।।२१६॥
विशेषार्थ -कुछ कम एक योजन विस्तारवाले राहु विमान चन्द्र विमानसे चार प्रमाणांगुल ( २० धनुष, ३ हाथ और ८ अगुल ) नोचे हैं । इनमेंसे पर्वराहु अपनी गति विशेषके कारण पूर्णिमाके अन्तमें जो चन्द्र विमानोंको पाच्छादित करते हैं तब चन्द्र ग्रहण होता है।
सूर्यको संचार भूमि का प्रमाण एवं अवस्थानजंबूदोवम्मि दुवे, विवायरा ताण एकक - चारमही । रविबिबाहिय-पण-सय-बहुत्तरा जोयणाणि तब्वासो ॥२१७॥
५१० ।।।। अर्थ-जम्बूद्वीपमें दो सूर्य हैं । उनकी चार-पृथिवी एक ही है । इस चार-पृथिवीका विस्तार सूर्य बिम्बके विस्तार यो०) से अधिक पाच सौ दस ( ५१॥ ) योजन प्रमाण है ।।२१७॥
सीदी - जुदमेक्क - सयं, जंबूदीये चरति मत्तंडा । तीसुत्तर-ति-सयाणि, विणयर-बिबाहियाणि लवणम्मि ॥२१८।।
१५० । ३३० । । अर्थ-सूर्य एक सौ अस्सी ( १८० ) योजन जम्बूद्वीपमें और दिनकर बिम्ब ( के विस्तार यो ) से अधिक तीनसौ तीस ( ३३०) योजन लवणसमुद्र में गमन करते हैं ॥२१८॥