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तिलोयपण्णत्ती
[ गाथा : २१२-२१४ अमावस्याको पहिचानइध एक्कक्क-कलाए, आवरिवाए खु राह - बिबेणं ।
चंदेक्क-कला मग्गे, जस्सि दिस्सेवि सो य अमवस्सा ॥२१२|| प्रथ-इसप्रकार राहु-बिम्बके द्वारा एक-एक करके कलाओंके आच्छादित हो जानेपर जिस मार्ग में चन्द्रको एक ही कला दिखती है वह अमावस्या दिवस होता है 11२१२।।
चान्द्र-दिवसका प्रमाणएक्कत्तीस - मुहुत्ता, अदिरेगो चंद-वासर-पमाणं । तेवीसंसा हारो, चउ - सय - बादाल - मेत्ता य ।।२१३॥
प्रर्य - चान्द्र दिवसका प्रमाण इकतोस मुहूर्त और एक मुहूर्त के चार सौ बयालीस भागोंमेंसे तेईस भाग अधिक है ।।२१३।।
विशेषार्थ-चन्द्रकी अभ्यन्तर वीथोकी परिधि ३१५०८६ योजन है, जिसे दो चन्द्र ६२ मुहर्तमें पूर्ण करते हैं अतः एक चन्द्रका दिवस प्रमाण ( ६२१ २ = ) ३१४ मुहूर्त होता है।
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अथवा
एक चन्द्रके कुल गगनखण्ड ५४६ ० ० हैं और चन्द्र एक मुहूर्त में १७६८ गगनखण्डोंपर भ्रमण करता है अत: सम्पूर्ण गगनखण्डोंपर भ्रमण करने में उसे ( ५४९०० १७६८= ) ३१४४६ मुहूर्त लगेंगे । यही उसका दिवस प्रमाण है ।
१५ दिन पर्यन्त चन्द्र कलाकी प्रतिदिनको हानिका प्रमाण-- पडिवाए वासरादो, वीहि पडि ससहरस्स सो राह।
एक्केवक - कलं मुचवि, पुणिमयं जाव लंघणदो ॥२१४।।
प्रथं-वह राहु प्रतिपद् दिनसे एक-एक वीथीमें गमन विशेष द्वारा पूर्णिमा पर्यन्त चन्द्रकी एक-एक कला को छोड़ता है ।।२१४।।
विशेषार्थ-चन्द्र विमानका विस्तार योजन है और उसके भाग १६ हैं, अतः जब १६ भागोंका विस्तार यो० है तब एक भागका विस्तार ( १६- ) योजन होता है अर्थात् राह प्रतिदिन प्रत्येक परिधिमें यो० ( २२९१५ मील ) ध्यास वाली एक-एक कला को छोड़ता है।