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________________ तिलीयपष्पत्ती [ गाथा : १८९-१९२ विशेषार्थ - तृतीय पयमें चन्द्रका एक मुहूर्तका गमन क्षेत्र [ ३१५५४९१६६ = २३६३५ ] ५०८० योजन, ३ कोस, १८५४ धनुष, ३ हाथ और कुछ अधिक १० अंगुल प्रमाण है ।। पंच-सहस्सा जोरण, चुलसीदी तह दुवेहिया-कोसा 1 लद्ध मुहुत गमर्थ, पंवस कथनमयि ॥१८६॥ २८८ ] · ५०८४ । को २ | अर्थ-चतुर्थ मार्ग में चन्द्रका मुहूर्त-परिमित गमन पाँच हजार चौरासी ( ५०८४ ) योजन तथा दो कोस प्रमाण प्राप्त होता है ।।१६९ ।। विशेषार्थ - चतुर्थ पथ में चन्द्रका एक मुहूर्तका गमनक्षेत्र [ ३१५७८०४३ + ३३३५ ] ५०८४ योजन, २ कोस, १५२६ धनुष, १ हाथ और कुछ अधिक ३ अंगुल है । अट्ठासीदी अहिया, पंच सहस्सा य जोयणा कोसो लद्ध मुहुस गमणं, पंचममगे ५०५८ को १ । मियंकस्स ||१०|t - अर्थ - पांचवें मार्ग में चन्द्रका मुहूर्त-गमन पाँच हजार अठासी ( ५०८८ ) योजन और एक कोस प्रमाण प्राप्त होता है ||१०|| विशेषार्थ – पाँच मार्ग में चन्द्रका एक मुहूर्तका गमनक्षेत्र [ ३१६०१०१ ÷ १५ ] ५०८८योजन, १ कोस, ११९७ धनुष, ० हाथ और कुछ अधिक १० अंगुल प्रमाण प्राप्त होता है । बाणउदि उत्तराणि पंच-सहस्वाणि जोपणा च । गमणं हिमसुखो छट्ट मग्गमि ॥१६॥ लद्ध मुहत्त ५०९२ । अर्थ – छटे मार्ग में चन्द्रका मुहूर्त-गमन पाँच हजार बानव ( ५०९२ ) योजन प्रमाण प्राप्त होता है ॥१९१॥ विशेषार्थ - छठे मार्ग में गमन क्षेत्रका प्रमाण [ ३१६२४०४६÷ १३३३५] ५०९२ योजन, ० कोस, ३ हाथ और कुछ अधिक १८ अंगुल है । - पंचैव सहस्सा, पणणउदी जोयणा ति-कोसा य । लख मुहुत्त गमणं, सीवंसुणो सक्षम पहम्मि ।। १६२ ।। ५०९५ । को ३ । - सातवें पथमें चन्द्रका मुहूर्त-गमन पाँच हजार पंचानबे योजन और तीन कोस प्रमाण - प्राप्त होता है ।।१९२।। विशेषाय - सातवें पथ में चन्द्रका एक मुहूर्तका गमन क्षेत्र [३१६४७ १४७÷१३६३] ५०९५ योजन, ३ कोस, ५३८ धनुष, ३ हाथ और कुछ अधिक १ अंगुल है |
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
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