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________________ माथा । १६६-१८५८ ] पंचमी महाहियारो [ २८७ विशेषार्थ - ६२६३ मुहूर्तों को समच्छेद विधानसे मिलाने पर अर्थात् भिन्न तोड़नेपर '३३३" मुहूतं होते हैं । इसका चन्द्रको प्रथम वीथीकी परिधिके प्रमाण में भाग देनेपर 4 ( 399946 : 13674 ) = ५०७३६९७५ योजन अर्थात् २०२९४२५६४६४६ मील प्राप्त होते हैं । 1 3 चन्द्रका यह गमन क्षेत्र एक मुहूर्त अर्थात् ४५ मिनिट का है ! इसो गमन क्षेत्र में ४५ का भाग देने से चन्द्र का एक मिनिट का गमन क्षेत्र (२०२९४२५६९ - ४८) - ४२२७९७६ मील होता है । अर्थात् प्रथम मार्ग में स्थित चन्द्र एक मिनिट में ४२२७९७१ मील गमन करता है । पंच सहस्सं अहिया, तेहत्तरि-जोयणाणि तिय-कोसा । लद्ध" मुहुत्त गमणं, पढम पहे सोदरिणस्स ||१८६॥ ५०७३ । को ३ । अर्थ - प्रथम पथमें चन्द्रके एक मुहूर्त ( ४८ मिनिट ) के गमन क्षेत्रका प्रमाण पाँच हजार तिहत्तर योजन और तीन कोस प्राप्त होता है !! - विशेषार्थ-चन्द्रका प्रथम वीथीका गमनक्षेत्र गाथामें जो ५०७३ यो० और ३ कोस कहा गया है । वह स्थूलता से कहा है । यथार्थ में इसका प्रमाण [ 21066 ] ५०७३ योजन, २ कोस, ५१३ धनुष, ३ हाथ और कुछ अधिक ५ अंगुल है । I सत्तत्तरि सविसेसा, पंच सहस्सारिण जोयणा कोसा । - लख मुहुत्त गमणं, चंबल्स दुइज्ज वीहीए ।।१८७।। ५०७७ १ को १ । - अर्थ - द्वितीय वीथी में चन्द्रका मुहूर्त काल-परिमित गमनक्षेत्र पाँच हजार सतत्तर (५०७७ ) योजन और एक कोस प्राप्त होता है ।। १६७॥ १. ६. ज. अद्ध विशेषार्थ - द्वितीय वीथी में चन्द्रका एक मुहूर्त का गमनक्षेत्र [ ३१५३१९१३३३३५ ] ५०७७ योजन, १ कोस, १८४ धनुष, २ हाथ और कुछ कम १३ अंगुल प्रमाण हैं । जोयण-पंच सहस्सा, सोदी- जुत्ता य तिणि कोलाणि । लद्ध मुहुत्त गमणं, चंदस्स तहज्ज बोहोए ।। १६८ ।। ५०८० | को ३ । - तृतीय वीथी में चन्द्रका मुहूर्त-परिमित गमनक्षेत्र पाँच हजार अस्सी (५०८० ) योजन और तीन कोस प्रमाण प्राप्त होता है ||१८८|| - -
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
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