SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 354
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तिलोयपण्णत्ती [ गाथा : १८२-१८५ बासहि - मुहत्तागि, भागा लेबोस तस्स हाराई। इगियीसाहिय बिसवं, लद्धं तं गयण - खंडावो ॥१२॥ मर्थ-चन्द्र एक मुहूर्तमें एक हजार सात सौ अड़सठ गगनखण्डों पर जाता है। इसलिए इस राशिका समस्त गगनखण्डोंमें भाग देने पर उन गगनखण्डोंको पार करने का प्रमाण बासठ मुहूर्त और तेईस भाग प्राप्त होता है । इस तेईस अंशका भागहार दो सौ इक्कीस है ।।१५१-१५२।। विशेषार्थ :- एक परिधि को दो चन्द्र पूरा करते हैं। दोनों चन्द्र सम्बन्धी सम्पूर्ण गगनखण्ड १०९८०० हैं। दोनों चन्द्र एक मुहूर्त में १७६८ गगनखण्डों पर भ्रमण करते हैं, अतः १०९८०० गगनखण्डोंका भ्रमणकाल प्राप्त करने हेतु सम्पूर्ण गगनखण्डोंमें १७६८ का भाग देनेपर ( १०९८००: १७६८ )=६२ मुहूर्त प्राप्त होते हैं। चन्द्रके वीथी-परिभ्रमणका कालअभंतर-वीहीदो, बाहिर-पेरंत दोभिण ससि-बिवा । कमसो परिम्भमंते, बासटि • मुहत्तएहि अहिएहि ॥१८॥ अविरेयस्स पमाणं, अंसा तेवीसया मुहत्तस्स । हारो दोणि सयाणि, जुत्ताणि एक्कवीसेरगं ॥१८४॥ प्रयं-दोनों चन्द्रबिम्ब क्रमशः अभ्यन्तर वीथीसे बाह्य-वीथी पर्यन्त बासठ मुहूर्तसे कुछ अधिक कालमें परिभ्रमण (पूरा) करते हैं । इस अधिकता का प्रमाण एक मुहूर्त के तेईस भाग प्रौन दो सौ इक्कीस हार रूप अर्थात् " मुहूर्त हैं ।। १८३-१८४॥ प्रत्येक थीथी में चन्द्रके एक मुहूर्त-परिमित गमनक्षेत्रका प्रमाणसम्मेलिय बाहि, इच्छिय - परिहीए भागमवहरिवं। तस्सि तस्सि ससिणो, एक्क - मुहत्तम्भि गदिमाएं ॥१५॥ ___ १३१५ । ३१५०८९ । १। अर्थ-समच्छेदरूपसे बासठको मिलाकर उसका इच्छित परिधिमें भाग देनेपर उस-उस वीथीमें चन्द्रका एक मुहूर्त में गमन प्रमाण भाता है ।।१८५॥ १. ६. व. २२/२३ ।
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy