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________________ माथा : १७८-१८१ ] पंचमो महाहियारो [ २८५ अर्थ-चौदहवें पथमें वह परिधि तीन लाख अठारह हजार तेरासी योजन और एक सौ इक्यावन भाग प्रमाण है ।।१७७॥ ३१७८५३४४ + २३० =३१८०८३१५७ यो । तिय-जोयण-लक्खाणि, अट्टरस-सहस्स-ति-सय-तेरसया । बे-सय-च उणादि-कला, बाहिर - मग्गम्मि सा परिहो।।१७८।। २१८३१३ । ३६४। मर्प-बाह्य ( पन्द्रहवें ) मार्ग में वह परिधि तीन लाख अठारह हजार तीन सौ तेरह योजन और दो सौ चौरानबे कला प्रमाण है ।।१७८।। ३१८०८३१४ + २३०१४-३१८३१३३६४ यो । समानकालमें असमान पारधियोंके परिभ्रमण कर सकनेका कारण चंचपुरा सिग्धगदी, जिग्गच्छता हवंति पविसंता । मंदगदी असमाणा, परिहोमो भमंति सरिस-कालेणं ॥१७६ ।। प्र-चन्द्र विमान बाहर निकलते हुए ( बाह्यमार्गोकी ओर जाते समय ) शीन-गतिवाले और ( अभ्यन्तर मार्गको प्रोर ) प्रवेश करते हुए मन्दगतिवाले होते हैं, इसलिए वे समान काल में ही असमान परिधियोंका भ्रमण करते हैं ।।१७।। चन्द्रके गगनखण्ड एवं उनका अतिक्रमण-कालएक्कं चेव य लक्खं, गवय सहस्सारिण अड-सयाणं पि । परिहीणं हिमंसुणो, ते कादम्बा गयणलंडा ॥१८०॥ ।१०९८०० । अर्थ-उन परिधियोंमें दो चन्द्रोंके कुल गगनखण्ड एक लाख नौ हजार आठ सौ (१०९८०० ) प्रमाण हैं ॥१०॥ चन्द्र के बीथी-परिभ्रमणका कालगच्छदि 'मुहृत्तमेक्के, अडसष्टि-जुल-सत्तरस-सयाणि । णभ-खंडाणि ससिगो, तम्मि हिवे सव्य-ायण-खंडाणि ॥११॥ १७६८। १. ब. मुहत्तमेतमेक्के ।
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
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