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तिलोमपणती
[ गाथा १७४ - १७७
अर्थ – चन्द्रकी दसवीं वीथीकी परिधि तोन लाख सत्तरह हजार एक सौ बासठ योजन और छह कला प्रमाण है ।। १७३ ।।
३१६९३१३३७+२३०४३३ - ३१७१६२४१७ गो० ।
तिय-जोधरण - लक्खाणि, सत्तरस' - सहस्स-ति-सय-बाणउदी ।
उगवण - जब सबसा, परिही एक्कारस पम्म ।।१७४।।
३१७३९२ । १३६ ।
प्रथ- ग्यारहवें पथ में वह परिधि तीन लाख सत्तर हजार तीन सौ बानबं योजन और एक सौ उनंचास भाग प्रमारा है || १७४ | |
३१७१६२४ + २३०४३ = ३१७३९२१ यो० ।
बावीसुतर- छस्सय सत्तरस सहस्स - जोय रण-ति-लक्खा । अट्ठोणिय-सि-सय-कला बारसम पहम्मि सा परिही ॥ १७५ ॥
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३१७६२२ । ३÷३ ।
अर्थ --- बारहवें पथ में यह परिधि तीन लाख सत्तरह हजार छह सौ बाईस योजन और आठ कम तीन सो अर्थात् दो सो बानवे कला प्रमाण है ।। १७५ ।।
३१७३९२४+२३०१-३१७६२२३३ यो० ।
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तेवष्णु सर- अज-सय-सत्तरस सहस्त- जोय रण-ति-लक्खा । - कलाओ परिही, तेरसम
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और आठ कला प्रमाण है ।।१७६ ।।
पहम्मि सिद रुचिणो ॥ १७६ ॥
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३१७८५३ | ४२७ ।
अर्थ - चन्द्र के तेरहवें पथमें वह परिधि तीन लाख सत्तरह हजार आठ सौ तिरेपन योजन
३१७६२२१३३+२३०३ - ३१७८५३४ यो० ।
तिय-जोयण - लक्खाणि, अट्टरस-सहस्सयाणि तेसीवी । इगिवण्ण-खुद सयंसा, चोहसम पहे इमा परिही ।।१७७॥
३१८०८३ | 733 /
१. द. अ. क्र. ज. सत्तर २. द. नं. सत्तर । ३. द. व. सत्तर
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