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________________ २-४ | तिलोमपणती [ गाथा १७४ - १७७ अर्थ – चन्द्रकी दसवीं वीथीकी परिधि तोन लाख सत्तरह हजार एक सौ बासठ योजन और छह कला प्रमाण है ।। १७३ ।। ३१६९३१३३७+२३०४३३ - ३१७१६२४१७ गो० । तिय-जोधरण - लक्खाणि, सत्तरस' - सहस्स-ति-सय-बाणउदी । उगवण - जब सबसा, परिही एक्कारस पम्म ।।१७४।। ३१७३९२ । १३६ । प्रथ- ग्यारहवें पथ में वह परिधि तीन लाख सत्तर हजार तीन सौ बानबं योजन और एक सौ उनंचास भाग प्रमारा है || १७४ | | ३१७१६२४ + २३०४३ = ३१७३९२१ यो० । बावीसुतर- छस्सय सत्तरस सहस्स - जोय रण-ति-लक्खा । अट्ठोणिय-सि-सय-कला बारसम पहम्मि सा परिही ॥ १७५ ॥ - ३१७६२२ । ३÷३ । अर्थ --- बारहवें पथ में यह परिधि तीन लाख सत्तरह हजार छह सौ बाईस योजन और आठ कम तीन सो अर्थात् दो सो बानवे कला प्रमाण है ।। १७५ ।। ३१७३९२४+२३०१-३१७६२२३३ यो० । · तेवष्णु सर- अज-सय-सत्तरस सहस्त- जोय रण-ति-लक्खा । - कलाओ परिही, तेरसम · और आठ कला प्रमाण है ।।१७६ ।। पहम्मि सिद रुचिणो ॥ १७६ ॥ ■ ३१७८५३ | ४२७ । अर्थ - चन्द्र के तेरहवें पथमें वह परिधि तीन लाख सत्तरह हजार आठ सौ तिरेपन योजन ३१७६२२१३३+२३०३ - ३१७८५३४ यो० । तिय-जोयण - लक्खाणि, अट्टरस-सहस्सयाणि तेसीवी । इगिवण्ण-खुद सयंसा, चोहसम पहे इमा परिही ।।१७७॥ ३१८०८३ | 733 / १. द. अ. क्र. ज. सत्तर २. द. नं. सत्तर । ३. द. व. सत्तर i
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
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