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________________ गाथा : १७०-१७३ ] पंचमो महाहियारो [ २८३ पर्थ - छठे पथमें वह परिधि तीन लाख सोलह हजार दो सौ चालीस योजन और दो सौ अठासी भाग प्रमाण है ।। १६९ ।। ३१६०१०१३६ + २३०१३ ३१६२४०१ यो० । सोलस- सहस्स चउ सय, एक्कत्तरि-हिय जोयरण ति लक्खा । चत्तारि कला सप्तम पहम्मि परिही मयंकस्स ॥ १७० ॥ ३१६४७१ | ४३० । धर्म –चन्द्र के सातवें पथ में वह परिधि तीन लाख सोलह हजार चार सौ इकहत्तर योजन और चार कला अधिक है || १७० ॥ ३१६२४०३६६+२३०१७ - ३१६४७१४३ यो० । सोलस - सहस्स सग-सय, एक्कम्भहिया य जोयण-ति- लक्खा । वनं लगता, भागा श्रम पहे परिही ।। १७१३ M ३१६७०१ | ३७ श्रथ - नाठवें पथमें उस परिधिका प्रमाण तीन लाख सोलह हजार सात सौ एक योजन और एक सौ सैंतालीस भाग अधिक है ।। १७१ ॥ ३१६४७१४३+२३०१३३३१६७०१४३७ यो० । सोलस - सहस्स - जव-सय-एक्कत्तोसादिरित-तिय-लक्खा । उबी- जुव-दु-सय- कला, ससिस्स परिही णवम - मग्गे ॥ १७२ ॥ ३१६९३१ | ु । अर्थ - चन्द्रके नौवें मार्ग में वह परिधि तीन लाख सोलह हजार नौ सौ इकतीस योजन और दो सौ नब्बे कला प्रमाण है ।। १७२ ।। ३१६७० ११३७ + २३०४३२ = ३१६९३१ यो० । बासट्टि - जुप्त - इगि-सय-' सत्त रस - सहस्स जोयरण ति लक्खा । छ aिय कलाओ परिही, हिमंसुणो वसम बोहोए ॥ १७३ ॥ ३१७१६२ । १७ । १. ब. क. द. सत्तर -
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
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