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२५२ ) ___ तिलोयपणती
[ गाथा : १६६ - १६९ अयं-द्वितीय पथमें परिधिक प्रमाण तीन लाख मह हमार सन जो उन्नीस योजन और एक सो तैतालीस भाग ( ३१५३१९३४. यो० ) प्रमाण है ।।१६५।।
विशेषार्थ-गाथा १६१ में प्रथम पथ की परिधिका प्रमाण ३१५०८६ योजन कहा गया है। इसमें परिधि प्रक्षेपका प्रमाण मिला देनेपर ( ३१५०८५+२३०६३) = ३१५३१९१४. यो० द्वितीय पथको परिधिका प्रमाण होता है । यही प्रक्रिया सर्वत्र जाननी चाहिए।
उरणवण्णा पंच-सया, पण्णरस-सहस्स जोयण-ति-लक्सा। छासोदो दुसय-कला, सा परिही तदिय - धीहीए ॥१६॥
३१५५४९ । ३६६। अर्थ--तृतीय वीथीको वह परिधि तीन लाख पन्द्रह हजार पाँच मी उनचास योजन और दो सौ छयासी भाग-प्रमाण है ।।१६६।। ३१५३१६१३३ + २३०१ =३१५५४५४६१ यो है।
सोदी सत्त-सयाणि, पण्णरस-सहस्स जोयण-ति-लक्खा । दोहि कलाप्रो परिही, चंबस्स चउत्थ - वीहीए ॥१६७॥
३१५७८० । ४३७ । प्रयं- चन्द्रकी चतुर्थ वीथीकी परिधि तीन लाख पन्द्रह हजार सात सौ अस्सी योजन और दो कला है ।।१६७॥
३१५५४९१६६ २३०१५ : १५७८०.३.. यो० ।
तिय-जोयण-लक्खाणि, बहुत्तरा तह य सोलस-सहस्सा। पणदाल - जुद - सयंसा, सा परिही पंचम - पहम्मि ॥१६॥
३१६०१० । १४॥ प्रर्ष-पांचवें पथमें वह परिधि तीन लाख सोलह हजार दस योजन और एक सौ पैतालीस भाग है ॥१६८।। ३१५७८०४३+२३०१७३३१६०१०१६ यो० ।
चालीस दु-सय सोलस-सहस्स तिय-लक्ख जोयणा अंसा । अट्ठासीदी दु - सया, छ? - पहे होदि सा परिही ।।१६६।।
३१६२४० । ३६६।