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________________ २७८ ] तिलोयपणती [ गाथा : १४९-१५२ मर्य-चतुर्थ मार्गमें चन्द्रोंका अन्तराल निन्यानबे हजार आठ सौ अट्ठावन योजन और दो सौ बीस कला ( ९९८५८१३॥ यो० ) प्रमाण है ।।१४८॥ ___६६७८५३ +९१२३१४ =९९८५८१३. यो । णवणउवि-सहस्सा-णव-सयाणि इगितीस जोयणाणं पि । इगि-सद इगि-वण्ण-कला, विच्चालं पंचम - पहम्मि ।।१४।। ९९९३१ 1 १७४। प्रथ-पांचवें पथमें चन्द्रोंका अन्तराल निन्यानबे हजार नौ सौ इकतीस योजन और एक सौ इक्यावन कला ( ९९९३१:२३ यो० ) प्रमाण है ।।१४९।। ६९८५८३३७+७२%=६६६३१११ यो । एक्कं जोयण-लक्खं, चउ-अन्भहियं हवेदि सविसेसं । बासीवि - कला - छ?, पहम्मि चंदाण विच्चालं ॥१५॥ अर्थ-छठे पथमें चन्द्रोंका अन्तराल एक लाख चार योजन और बयासी कला ( १००००४४३५ यो० ) प्रमाण है ।।१०।। ९९९३१४३१ + ७२१९६६६३११११ यो । सत्तत्तरि-संजुत्तं, जोयण - लक्खं च तेरस कलाओ। सतम - मग्गे दोण्हं, तुसारकिरणाण विच्चालं ॥१५॥ १०००७७४। अर्थ-सात मार्ग में दोनों चन्द्रोंका अन्तराल एक लाख सतत्तर योजन और तेरह कला ( १०००७७४१ यो०) प्रमाण है ॥१५१॥ १००००४१+७२३५६ - १००७७७४६ यो० । उणवण्ण-अबेक्क-सयं, जोयरण-लक्खं कलाओ सिण्णि-सया । एक्कत्तरी ससीणं, अट्ठम - मग्गम्मि विच्चालं ॥१५२॥ १०.१४९ । ३५. अर्थ-आठवें मार्गमें चन्द्रोंका अन्तराल एक लाख एक सौ उनन्चास योजन और तीन सौ इकहत्तर कला ( १००१४९३३३ यो० ) प्रमाण है ॥१५२॥ १०००७७१३+७२३५४८- १०० १४६३ यो० ।
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
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