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________________ 787 / 223-220) महारा एक्कं जोयण- लक्खं, बावीस-जुदाणि योष्णि य सर्वाणि । दो - उत्तर-ति-सय- कला, नवम पहे ताण विद्यालं ॥ १५३॥ - १००२२२ । १३३ । अर्थ – नौवें मार्गमें उन चन्द्रोंका अन्तराल एक लाख दो सौ बाईस योजन और तीन सौ दो कला ( १००२२२१२३ यो० ) प्रमाण है ।। १५३ ॥ १००१४९१३७ + ७२३ - १००२२२३ यो० 1 एक्कं जोयण - लक्खं, पणणउदि जुदाणि दोषि य सयाणि । बे- सय तेत्तीस कला, विश्वं वसमम्मि इंद्रणं ॥ १५४ ॥ १००२६५ । १३३ । अर्थ -- दसवें पथमें चन्द्रोंका अन्तराल एक लाख दो सौ पंचानबे योजन और दो सौं तैंतीस कला ( १००२९५३३४ यो० ) प्रमाण है ।। १५४ ।। - १००२२२१३३ + ७२३ - १००२६५४३३ यो० है । एक्कं जोयण- लक्खं अट्ठा-सट्टी जुदा य तिष्णि सया । चउ-सडि सय कलाश्रो, एक्करस-पहम्मि तं विच्चं ॥ १५५ ॥ १०००३६८ । ६४ । अर्थ- ग्यारहवें मार्ग में यह अन्तराल एक लाख तीन सौ अड़सठ योजन और एक सौ चौसठ कला – ( १००३६८१३ यो० ) प्रमाण है || १००२९५३३३+७२३३७ = १००३६८१३ यो । एक्के लक्खं च सय, इगिदाला जोयणाणि श्रविरेगे । पण उदि कला मग्गे, बारसमे अंतरं ताणं ॥ १५६ ॥ - १००४४१ । ४२७ । अर्थ- बारहवें मार्ग में उन चन्द्रोंका अन्तर एक लाख चार सौ इकतालीस योजन पंचानवे कला ( १००४४१ यो० ) प्रमाण है ।। १५६ ।। १००३६८१३७ + ७२३ - १००४४१४यो । - उवस- जुव-पंच-समा, जोयरा- लक्खं कलाओ छब्बीसं । तेरस पहम्मि दोहं विच्चालं सिसिरकिरणाणं ॥ १५७ ॥ १००५१४ । ४८२२७ ।
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
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