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गाथा । १४५ - १४८ 1
पंचमो माहिया
चन्द्रोंकी अन्तराल वृद्धिका प्रमाण
ससहर पह-सूचि-बड्डी, बोहिं गुणिवाए होविजं लय ।
सा आबाधा घड़ी, पडिमग्गं चंद चंदारणं ॥ १४५ ॥
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३५८ ७२ । १६ ।
अर्थ - चन्द्रकी पथ- सूचो वृद्धिका जो ( ३६३ यो० ) प्रमाण है, उसे दो से गुणा करने पर जो ( ३६३३६ x २ = ७२१३९ यो० ) लब्ध प्राप्त हो उतना प्रत्येक गली में दोनों चन्द्रोंके परस्पर एक दूसरे के बीच में रहने वाले अन्तरालकी वृद्धिका प्रमाण होता है ।। १४५ ।।
प्रत्येक पथमें दोनों चन्द्रोंका पारस्परिक अन्तर
बारस-जुद सत्त-सया, गवणउदि सहस्स जोयणाणं पि । श्रवण्णा ति-सय-कला, बिदिय पहे चंद चंदस्स || १४६ ॥
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९९७१२ । ३६ ।
अर्थ - द्वितीय पथ में एक चन्द्र से दूसरे चन्द्रका अन्तराल निन्यानवे हजार सात सौ बारह योजन और तीन सौ अट्ठावन कला (९९७१२३ यो० ) प्रमाण है || १४६ ॥
[ २७७
विशेषार्य - गाथा १४३ में प्रथम बीथो स्थित दोनों चन्द्रोंके अन्तरका प्रमाण १९६४० योजन कहा गया है। इसमें अन्तरालवृद्धिका ( ७२१ यो० ) प्रमाण जोड़ देनेपर द्वितीय वीथी स्थित दोनों चन्द्रोंका अन्तराल प्रमाण ( ६६६४०+७२३३६ ) ९९७१२ योजन प्राप्त होता
है । अन्य वीथियोंका अन्तराल भी इसी प्रकार निकाला गया है ।
वरणउदि सहस्साणि, सत्त-सया जोयणाणि पणसीबी ।
उणणउदी दुसय कला, तबिए विच्चं सिहंसूणं ॥ १४७ ॥
९९७८५ । १२७ ।
अर्थ - तृतीय पथमें चन्द्रोंका ( पारस्परिक ) अन्तराल निन्यानबे हजार सात सौ पचासी योजन और दो सौ बीस कला ( ९९७८५ यो० ) प्रमाण है ।। १४७ ।।
९९७१२
+ ७२०
९९७८५३ यो० ।
नवणउवि सहसारिंग, श्रटु-सया जोयणाणि अडवण्णा ।
वीसुतर- दु-सय-कला, ससीण विष्वं तुरिम ममगे ॥ १४८ ॥
९९६५८ | २३ |