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________________ २७६ ] तिलायपष्णता [ गाथा । १४१-१४४ पणवाल-सहस्साणि, तिम्णि सया जोयणाणि उणतीसं । इगिहत्तरि-ति-सय-कला, पण्णरस-पहम्मि तं विच्चं ॥१४॥ ४५३२९ । । । मर्थ-पन्द्रहवें पथमें वह अन्तराल पैंतालीस हजार तीन सौ उनतीस योजन और तीन सौ इकहत्तर कला ( ४५३२९४७ यो०) प्रमाण है ।।१४१।। विशेषार्थ-- ४५२९३१६३+ ३६४१=४५३२९३३३ योजन । यह ४५३२९॥ योजन ( १८१३१९४७५३५ मील ) मेरु पर्वतसे बाह्य वीथी में स्थित चन्द्र का अन्तर है। बाहिर-पहादु ससिणो, प्रादिम-बोहोए प्रागमण-काले । पुथ्वप-मेलिद-खेदं, 'फेलसु जा चोइसादि-पढ़म-पहं ॥१४२॥ अर्थ-बाह्य ( पन्द्रहवें ) पयसे चन्द्रके प्रथम वीथीकी और प्रागमनकालमें पहिले मिलाए हुए क्षेत्र ( ३६९३७ यो० ) को उत्तरोत्तर कम करते जानेसे चौदहवीं गलीको आदि लेकर प्रथम गलो तकका अन्तराल प्रमाण आता है ।।१४२।। प्रथम वीथीमें स्थित दोनों चन्द्रोंका पारस्परिक अन्तरसाद जवं ति-सयाणि, सोहेज्जसु जंबुदीव-वासम्मि । जं सेसं प्राबाहं, अभंतर • मंडलेंदूणं ॥१४३।। णषणद-सहस्साणि, छस्सय-चालीस-जोयणाणि पि । चंबाणं विच्चाल. अभंतर - मंडल - ठिवाणं ॥१४४।। ___ ९९६४० । अर्ष-जम्बूद्वीपके विस्तार से तीन सौ साठ योजन कम कर देनेपर जो शेष रहे उतना अभ्यन्तर मण्डलमें स्थित दोनों चन्द्रोंके आबाधा अर्थात् अन्तरालका प्रमाण है। अर्थात् अभ्यन्तर मण्डल में स्थित दोनों चन्द्रोंका अन्तराल निन्यानबे हजार छह सौ चालीस ( ९९६४० ) योजन प्रमाण है ।।१४३-१४४॥ विशेषार्थ जम्बूद्वीपका व्यास एक लाख योजन है। जम्बूद्वीपके दोनों पार्श्वभागों में चन्द्रमाके चार क्षेत्रका प्रमाण ( १८०४२ )=३६० योजन है । इसे जम्बूद्वीपके व्यासमेंसे घटा देने पर (१०००००-३६० = ) ९९६४० योजन शेष बचते हैं । यही ९९६४० योजन प्रथम वीथीमें स्थित दोनों चन्द्रोंका पारस्परिक अन्तर है । १. द. फेलमु।
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
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