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________________ २७४ ] तिलोयपणरणत्तो [ गाथा : १३२-१३५ अर्थ-पंचम पथको प्राप्त चन्द्र का मेरु पर्वतसे चवालीस-हजार नौ सौ पैंसठ योजन और दो सौ नवासी भाग ( ४४९६५३४ यो० ) प्रमाण अन्तर है ॥१३१॥ ४४९२९१२+३६ -४४९६५२ यो० । पणाल-सहस्सा बे-जोयण-जुत्ता कलाओ इगिवालं । छट्ट-पह-टिव-हिमकर-चामीयर - सेल - विच्चालं ॥१३२॥ ___ ४५००२ । ३.1 प्रथं-छठे पथम स्थित चन्द्र और मेरु पर्वतकं मध्य पंतालीस हजार दो योजन और इकतालीस कला ( ४५००२४३४ यो०) प्रमाण अन्तर है ।।१३२॥ ४४९६५३६३ + ३६१ ४५००२४३५ यो० । पणदाल-सहस्सा जोयणाणि अडतीस दु-सय-वीसंसा । सत्तम-वोहि-गदं सिद - मयूख - मेरूरण विच्चालं ॥१३३॥ ४५०३८ । ३३ । प्रयं-सातवीं गली को प्राप्त चन्द्र और मेकके मध्य पैंतालीस हजार अड़तीस योजन । और दो सौ बीस भाग-( ४५०३८४ यो०) प्रमाण अन्तर है ।।१३३।। ४५००२३६३= ४५०३८१३० यो० । पणवाल-सहस्सा चउहत्तरि-अहिया कलाप्रो तिण्णि-सया। णवणववो विच्चालं, अटुम - वोही - गदिदु - मेरुणं ॥१३४॥ ४५०७४ । ३ । प्रर्थ-आठवीं गलीको प्राप्त चन्द्र और मेरुके बीच पैंतालीस-हजार चौहत्तर योजन और तीन सौ निन्यानबे कला ( ४५०७४३६६ यो०) प्रमाण अन्तर है ।।१३४॥ ४५०३८३३+३६१३-४५०७४३॥ यो । पणवाल-सहस्सा सयमेक्कारस-जोयणाणि कलाण सयं । इगिवण्णा विच्चालं, गथम - पहे चंद - मेरूणं ॥१३५।। ४५१११ । १११। अर्थ-नौवें पथमें चन्द्र और मेरुके मध्य में पैंतालीस हजार एक सौ ग्यारह योजन और एक सौ इक्यावन कला ( ४५११११५३ यो०) प्रमाण अन्तराल है ।।१३।। ४५०७४३ + ३६१३१=४५१११३३१ यो ।
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
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