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गाथा : १२८-१३१ ] - पंचमो महाहियारो
द्वितीयादि वीथियोंमें स्थित चन्द्रोंका सुमेरु पर्वतसे अन्तरचउदाल-साहस्सा अड-सयाणि छप्पण्ण-जोयणा अहिया । उणसोदि-जद-सयंसा, बिदियद्ध-गदेंदु-मेरु - विच्चालं ॥१२॥
४४८५६ । । अर्थ द्वितीय प्रध्व ( गली ) को प्राप्त हुए चन्द्रमाका मेरु पर्वतसे चवालीस हजार आठ सो छप्पन योजन और ( एक योजनके चारसौ सत्ताईस भागोंमेंसे ) एक सो उन्यासी भाग-प्रमाण अन्तर है ।।१२८॥
विशेषार्थ :- मेरु पर्वतसे चन्द्रकी प्रथम वीथीका अन्तर गाथा १२१ में ४४८२० योजन कहा गया है । उसमें चन्द्रकी प्रतिदिनको गति का प्रमाण जोड़ देनेपर सुमेरुसे द्वितीय वोथी स्थित चन्द्र का अन्तर { ४४८२० + ३६११) ४४८५६३३६ योजन प्रमाण है। यही प्रक्रिया मागे भी कही गई है।
चउबाल-सहस्सा अड-सयाणि बाणदि जोयणा भामा । सरवणुपम प्रति माया. लगियह ग तुरंदर-पमाणं ॥१२६।।
४४८९२ । ३२६ । प्रर्थ -तृतीय गलीको प्राप्त हुए चन्द्र और मेरु-पर्वतके बीच में चवालीस हजार आठ सौ बानब योजन और तीन सौ अट्टावन भाग अधिक अन्तर-प्रमाण है ।।१२९।। यथा-४४८५६१११ यो० + ३६१३० यो०- ४४८६२११६ यो ।
चउदाल-सहस्सा णव-सयाणि उणतीस जोयणा भागा। वस-जुत्त-सयं विच्चं, चउत्थ-पह-गव-हिमंसु-मेलणं ॥१३०॥
४४९२९।११। अर्थ-चतुर्थ पथको प्राप्त हुए चन्द्रमा और मेरुके मध्य चबालीस हजार नौ सौ उनतीस योजन और एक सौ दस भाग प्रमाण अधिक अन्तर है ।।१३० ।।
४४८९२३३६ + ३६४१-४४९२९४३० योजन ।
चउवाल-सहस्सा णव-सयाणि पण्णटि जोयरणा भागा। दोणि सया उणणउदी, पंचम-पाह-इंदु-मंदर-पमाणं ॥१३॥
४४९६५ । ३६७।