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________________ तिलोय पणती [ गाथा : १२५-१२७ विशेषार्थ :- चन्द्रकी एक वीथीका विस्तार योजन है तो, १५ वोथियोंका विस्तार कितना होगा? इसप्रकार त्रैराशिक करनेपर (१५) -योजन गलियोंका विस्तार हुआ । इसे चार क्षेत्र विस्तार ५१०३६ यो० में से घटा देनेपर ( १५८ ) 03 योजन १५ गलियोंका अन्तराल प्रमाण प्राप्त होता है। 1= चन्द्रकी प्रत्येक वीथीका अन्तराल प्रमाण २७२ ] तं चोइस पवित्तं, हवेदि एक्केवक- कोहि विच्चालं । पणुतीस जोयणाणि, अविरेकं तस्स परिमाणं ।। १२५ ।। - श्रविरेकस्स पमाणं, चोट्स मदिरिच- बेण्णि-सदमंसा । सायीसम्भहिया, चत्तारि सया हवे हारो ॥ १२६ ॥ ३५ । ११४ । श्रथ :--इस ( ) में चौदहका भाग देनेपर एक-एक वीथी के अन्तरालका प्रमाण होता है । जो पैंतीस योजनों से अधिक है । इस अधिकताका जो प्रमाण है उसमें दो सौ चौदह (२१४) अंश और चार सौ सत्ताईस ( ४२७ ) भागहार है ।।१२५-१२६ ।। 3093 विशेषार्थ - चन्द्रमा की गलियाँ १५ हैं किन्तु १५ गलियों के अन्तर १४ ही होंगे, अतः सम्पूर्ण गलियोंके अन्तराल प्रमाण में १४ का भाग देनेपर प्रत्येक गलीके अन्तरालका प्रमाण ( 300 = १४ ) = ३५२१ योजन प्राप्त होता है । चन्द्रके प्रतिदिन गमन क्षेत्रका प्रमाण पढम पहादो चंदो, बाहिर-मग्गस्स गमण-कालम्मि । वीहि पडि मेलिज्जं विच्चालं बिंब संजुत्तं ॥ १२७ ॥ - ३६ । १३६ । अर्थ - चन्द्रोंके प्रथम वीथीसे द्वितीयादि बाह्य वीथियोंकी ओर जाते समय प्रत्येक वीथीके प्रति, बिम्ब संयुक्त अन्तराल मिलाना चाहिए ।। १२७ ।। विशेषार्थ -- चन्द्र की प्रत्येक गलीका विस्तार योजन है और प्रत्येक गलीका अन्तर प्रमाण ३५१ योजन है । इस अन्तरप्रमाण में गलीका विस्तार मिला देनेपर ( ३५३३ + ६ == ) ३६४६४ योजन प्राप्त होते हैं । चन्द्रको प्रतिदिन एक गली पारकर दूसरी गली में प्रवेश करने तक ३६४३६ मो० प्रमाण गमन करना पड़ता है ।
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
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