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गाथा : १२२-१२४ ]
पंचमी महाहियारो
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विशेषार्थ - जम्बूद्वीपका विस्तार एक लाख योजन है। जम्बूद्वीप के दोनों पार्श्वभागों में चन्द्र के चार क्षेत्रका प्रमाण ( १८०x२ ) = ३६० योजन है और सुमेरुपर्वतका भू-विस्तार १०००० योजन है । अत: १००००० ३६०= ६६६४० योजन जम्बूद्वीपको प्रथम अभ्यन्तर ) वीथी में स्थित दोनों चन्द्रोंका पारस्परिक अन्तर है और इसमेंसे सुमेरुका भू-विस्तार घटाकर शेषको प्राधा करने पर (६६६४००००० - ४४८२० योजन सुमेरुसे अभ्यन्तर ( प्रथम ) वीथी में स्थित चन्द्रके अन्तरका प्रमाण प्राप्त होता है ॥
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चन्द्रकी
प्रमाण
एषक-सट्टीए गुरिंदा, पंच-सया जोयणारिण दस - जुत्ता ।
ते अडदाल - विमिस्सा, ध्रुवरासी णाभ चारमही ।। १२२ ।
अर्थ - पाँचसो दस योजनको इकसठसे गुणा करनेपर जो लब्ध प्राप्त हो उसमें वे अड़तालीस भाग और मिला देनेपर ध्रुवराशि नामक चारक्षेत्रका विस्तार होता है ।। १२२ ।।
विशेषार्थ-चन्द्रोंके संचार क्षेत्रका नाम चारक्षेत्र है। जिसका प्रमाण ५१०
योजन है । गाथामें इसी प्रसारण को समान छेद करने ( भिन्न तोड़ने ) पर जो राशि उत्पन्न हो उसे ध्रुवराशि स्वरूप धारक्षेत्र कहा है । यथा - ५१०४६१-३१११०, ३१११०+४६= ३११५८ अर्थात् यो ध्रुवराशि स्वरूप चारमही का प्रमाण है । गाथा १२३ में इन्हीं ३११५८ को ६१ से भाजितकर प्राप्त राशि ५१०३ को वराशि कहा है ।
एक्कत्तीस सहस्सा, अट्ठावण्णुत्तरं सर्द तह य । इगिसट्टीए भजिये, धुबरासि पमाणमुद्दिट्ठ ।। १२३ ।।
७१३५८
अर्थ --- इकतीस हजार एक सौ अट्ठावन ( ३११५८ ) में इकसठ (६१) का भाग देनेपर जो ( ५१० यो० ) लब्ध श्रावे उतना ध्रुव राशिका प्रमाण कहा गया है ।
चन्द्रकी सम्पूर्ण गलियोंके अन्तरालका प्रमाण
पण्णरसेहि गुणिदं हिमकर-बिंब-प्यमाणमवणेज्जं ।
ध्रुवरासीदो सेसं विश्वालं सयल बीहोणं ॥ १२४ ॥
३०,३१८ । 3031
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प्रथं-- चन्द्रबिम्बके प्रमाणको पन्द्रहसे गुणा करनेपर जो लब्ध प्राप्त हो उसे ध्रुवराशिमें से कम कर देने पर जो अवशेष रहे वही सम्पूर्ण गलियोंका अन्तराल प्रमाण होता है ।। १२४ ।।