SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 339
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गाथा : १२२-१२४ ] पंचमी महाहियारो [ २७१ विशेषार्थ - जम्बूद्वीपका विस्तार एक लाख योजन है। जम्बूद्वीप के दोनों पार्श्वभागों में चन्द्र के चार क्षेत्रका प्रमाण ( १८०x२ ) = ३६० योजन है और सुमेरुपर्वतका भू-विस्तार १०००० योजन है । अत: १००००० ३६०= ६६६४० योजन जम्बूद्वीपको प्रथम अभ्यन्तर ) वीथी में स्थित दोनों चन्द्रोंका पारस्परिक अन्तर है और इसमेंसे सुमेरुका भू-विस्तार घटाकर शेषको प्राधा करने पर (६६६४००००० - ४४८२० योजन सुमेरुसे अभ्यन्तर ( प्रथम ) वीथी में स्थित चन्द्रके अन्तरका प्रमाण प्राप्त होता है ॥ } चन्द्रकी प्रमाण एषक-सट्टीए गुरिंदा, पंच-सया जोयणारिण दस - जुत्ता । ते अडदाल - विमिस्सा, ध्रुवरासी णाभ चारमही ।। १२२ । अर्थ - पाँचसो दस योजनको इकसठसे गुणा करनेपर जो लब्ध प्राप्त हो उसमें वे अड़तालीस भाग और मिला देनेपर ध्रुवराशि नामक चारक्षेत्रका विस्तार होता है ।। १२२ ।। विशेषार्थ-चन्द्रोंके संचार क्षेत्रका नाम चारक्षेत्र है। जिसका प्रमाण ५१० योजन है । गाथामें इसी प्रसारण को समान छेद करने ( भिन्न तोड़ने ) पर जो राशि उत्पन्न हो उसे ध्रुवराशि स्वरूप धारक्षेत्र कहा है । यथा - ५१०४६१-३१११०, ३१११०+४६= ३११५८ अर्थात् यो ध्रुवराशि स्वरूप चारमही का प्रमाण है । गाथा १२३ में इन्हीं ३११५८ को ६१ से भाजितकर प्राप्त राशि ५१०३ को वराशि कहा है । एक्कत्तीस सहस्सा, अट्ठावण्णुत्तरं सर्द तह य । इगिसट्टीए भजिये, धुबरासि पमाणमुद्दिट्ठ ।। १२३ ।। ७१३५८ अर्थ --- इकतीस हजार एक सौ अट्ठावन ( ३११५८ ) में इकसठ (६१) का भाग देनेपर जो ( ५१० यो० ) लब्ध श्रावे उतना ध्रुव राशिका प्रमाण कहा गया है । चन्द्रकी सम्पूर्ण गलियोंके अन्तरालका प्रमाण पण्णरसेहि गुणिदं हिमकर-बिंब-प्यमाणमवणेज्जं । ध्रुवरासीदो सेसं विश्वालं सयल बीहोणं ॥ १२४ ॥ ३०,३१८ । 3031 - प्रथं-- चन्द्रबिम्बके प्रमाणको पन्द्रहसे गुणा करनेपर जो लब्ध प्राप्त हो उसे ध्रुवराशिमें से कम कर देने पर जो अवशेष रहे वही सम्पूर्ण गलियोंका अन्तराल प्रमाण होता है ।। १२४ ।।
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy