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________________ तिलोयपण्णत्ती के पाँचवे और सातवें ___ महाधिकार का गरिणत [ लेखक : प्रो० लक्ष्मीचन्द्र जैन, सूर्या एम्पोरियम, ६७७ सराफा जबलपुर (म. प्र.)] पांचवां महाधिकार गाथा ५/३३ इस गाथामें अंतिम आठ द्वीप-समुत्रों के विस्तार भी गुणोत्तर श्रेरिण में दिये गये हैं। अंतिम स्वयंभूवर समुद्र का विस्तार( जगश्रेणी-२८)+७५००० योजन इसके पश्चात् १ राजु चौड़े तथा १००००० योजन बाहल्यवाले मध्यलोक तल पर पूर्व पश्चिम में "{ १ राज -[ ( राजु+७५००० योजन )+( राज + ३७५०० योजन ) + ( राजु + १८७५० योजन )+....... .... + { ५०००० योजन )]}" जगह बनती है। यद्यपि १ राज में से एक अनन्त श्रेणी भी घटाई जाये सब भो यह लम्बाई राजु से कुछ कम योजन बच रहती है । यह गुणोतर श्रेणी है । गाथा ५/३४ यदि जम्बूद्वीप का विष्कम्भ D, है । मानलो २॥ वें समुद्र का विस्तार D, मान लिया जाय और २०+ १ = द्वीप का विस्तार Dan+, मान लिया जाय तब निम्नलिखित सूत्रों द्वारा परिभाषा प्रदर्शित की जा सकेगी। Da =Dee+,x२-D, ४३-उक्त द्वीप की आदि सूची Dm =Drn+, x ३-D,x३-उक्त द्वीप की मध्यम सूची Db =Dont,x४--D,x३= उक्त द्वीप की बाह्य सूची द्वीपों के लिये इस सूत्र का परिसित रूप होगा। गापा ५/३५ द्वीप या समुद्र की परिधि =0v3° [0 वें द्वीप या समुद्र की सूची]
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
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