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प्रस्तुत खण्ड में मुद्रित पिषों की रचना के लिए श्री विमलप्रकाशजीन अजमेर और श्री रमेशचन्द्रजी मेहता, उदयपुर धन्यवाद के पात्र है।
पूज्य माताजी की संघस्थ माविका प्रशान्समतीजी और आयिका पवित्रमतीजी को सविनय नमन करता हैं जिनका प्रोत्साहन ग्रन्थ को शीघ्र प्रकाशित करने में सहयोगी रहा है।
आवरणीय ब्र० कजोड़ीमलजी कामदार पूज्य माताजी के संघ में ही रहते हैं । प्रस्तुत ग्रन्थ के बीमारोपण से लेकर सीन खण्यों के रूप में इसके प्रकाशन तक पाने वाली अनेक छोटी बड़ी बाधाओं का बापने तत्परता से परिहार किया है। एतस्यं मैं आपका पस्यन्त अनुग्रहीत हूं।
श्री अखिल भारतवर्षीय दिगम्बर जैन महासभा के प्रकाशन विभाग को इस नरिमापूर्ण प्रकापान के लिए बधाई देता हूं। सेठी ट्रस्ट के निमामक एवं वर्तमान महासभाध्यक्ष पादरणीय श्री निर्मशकुमारजी सेठी का पाभार किन पापों में व्यक्त करू । उन्हीं की प्रेरणा से यह ग्रन्थ इस रूप में प्रापके सन्मुख आ पाया है। आपने विपुल अषं सहयोग प्रदान कर एतत्सम्बन्धी चिम्ताओं से हमें सवैध मुक्त रखा है, एतवर्थ मैं आपका व प्रभ्य सहयोगी दातारों का हार्दिक पभिनन्दन करता हूं और इस श्रुत सेवा के लिए उन्हें हार्दिक साधुवाद देता हूँ।
अस्य के तीनों खण्डों का शुद्ध और सुन्दर मुद्रण कमल प्रिन्टर्स, मदनगंज-किशनगढ़ में हुआ है । मैं प्रेस मालिक श्रीमान् पाँचूलालजी जैन के सहयोग का उल्लेख किए बिना नहीं रह सकता । आज कोई बीस वर्ष से मेरा जो सम्बन्ध इस प्रेस से चला आरहा है उसका मुख्य कारण श्री पाचूलामजी का सौजन्य और मेरे प्रति सद्भाव हो है। इसी कारण मेरे जोधपुर पाजाने पर भी इस प्रेस से सम्बन्ध विच्छर की मैंने कभी कल्पना भी नहीं की। मुझे पापा है, जब तक उनका प्रेस से सम्बन्ध है और मेरा साहित्यिक कार्य से, तब तक हमारा सहयोग प्रस्खलित बना रहेगा। मैं सुरुचिपूर्ण मुद्रण के लिए प्रेस के सभी कर्मचारियों को धन्यवाद देता हूं।
यस्ता अपने वर्तमानरूप में 'तिलीयपण्णत्तो' के प्रस्तुत संस्करण को जो कुछ उपलग्धि है यह सब इन्हीं थमशील धर्मनिष्ठ पुण्यारमाओं की है । मैं हृदय से समका अनुग्रहीत हूं।
सुधीगणग्राही विद्वामों से सम्पादन प्रकाशन में रही भूलों के लिए सबिमय अमायाचना करता।
महाबीर जयन्ती ३१-३-८८ थी पाश्र्वनाथ जैन मन्दिर शास्त्रीनगर जोधपुर
बिनीत: डा० चेतनप्रकाश पाटनी