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गाथा : ११३ ]
पंचमो महाहियारो
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कोस,
अर्थ- जघन्य ताराओं का तिर्यग अन्तराल एक कोस का सातवाँ भाग प्रथवा मध्यम ताराओं का यही अन्तराल ५० योजन और उत्कृष्ट ताराग्रोंका तिर्यग अन्तराल एक हजार ( १००० ) योजन प्रमाण है ।। ११२ ।।
सेसाओ वण्णणाम्रो, पुष्य पुराणं हवंति सरिसाणि ।
एत्तो गुरुयइट्ठ पुर परिमाणं परूवेमो ॥ ११३ ॥
| एवं विष्णासं समत्तं ॥४॥
अर्थ- - इन ताराओंका शेष वर्णन पूर्व पुरोंके सदृश है । अब यहाँसे आगे गुरु द्वारा उपदिष्ट पुरों ( नगरों ) का प्रमाण कहते हैं ।। ११३ ॥
|| इस प्रकार विन्यासका कथन समाप्त हुआ || ४ ||
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१. व. ब. क. ज. सम्मता ।