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________________ २६४ ] तिलोयपत्ती तबद्ध बहलत्तं' । उवरिम-तल - विवखंभा, कोसस्स सेसाओ वण्णा, ताणं पुग्बुस सरिसाओ ॥ ६८ ॥ अर्थ- उनके उपरिम तलका विस्तार अर्ध कोस एवं बाहुल्य इससे आधा अर्थात् पाव कोस प्रमाण है । इनका शेष वर्णन पूर्वोक्त नगरोंके सदृश है ||१८|| - शनि ग्रहके नगरोंकी प्ररूपणा - चित्तोवरिम-तलादो, गंतूणं णव सारंग जोये गए । उवरि सुवण-मयाणि, सणि-णयराणि णहे होंति ॥६६॥ । ९०० । - चित्रा पृथिवीके उपरिम तलसे नौ सौ ( ९०० ) योजन ऊपर जाकर आकाश में शनि ग्रहों के स्वर्णमय नगर हैं ।। ९९ ।। [ गाथा: ९८-१०२ उवरिम-तल - विक्खंभा', कोसद्ध होंति ताण पत्तेक्कं । सेसाओ वाओ, पुथ्व पुराणं सरिच्छाओं ॥ १०० ॥ - श्रथं- उनमें से प्रत्येक शनि नगरके उपरिम तलका विस्तार अर्ध कोस प्रमाण है। इनका शेष वर्णन पूर्वोक्त नगरोंके सदृश ही है || १०० ॥ अवशेष ८३ ग्रहोंकी प्ररूपणा - अवसेलाण गहाणं, जयश्री उवरि चित्त-भूमीदो । गंतून बुह सगीणं, विश्चाले होंति णिच्चाओ ।। १०१ ।। - श्रवशिष्ट ( ३ ) ग्रहोंकी नित्य ( शाश्वत ) नगरियां चित्रा पृथिवीके ऊपर जाकर बुध ग्रहों और शनि ग्रहों के अन्तरालमें अवस्थित हैं ।। १०१ ॥ १. द. ज. बहलब । विशेषार्थ -- गाथा १५ से २२ तक अर्थात् आठ गाथाथों में बुधको आदि लेकर ८८ ग्रहोंके नाम दर्शाये गये हैं । इनमेंसे बुध, शुक्र, गुरु, मंगल और शनि ग्रहोंका वर्णन ऊपर किया जा चुका है । शेष ८३ ग्रहोंका अवस्थान चित्रा पृथिवीसे ऊपर जाकर बुध और शनि ग्रहोंके अन्तराल अर्थात् ८८८ योजनसे ९०० योजनके बीचमें है । ताणि यर-तलारिंग, जह जोग्गुद्दिट्ठ-वास बहलागि । उताण - गोलकद्धोवमाणि बहु रयण मइयाणि ॥ १०२ ॥ - -
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
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