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तिलोयपत्ती
तबद्ध बहलत्तं' ।
उवरिम-तल - विवखंभा, कोसस्स सेसाओ वण्णा, ताणं पुग्बुस सरिसाओ ॥ ६८ ॥
अर्थ- उनके उपरिम तलका विस्तार अर्ध कोस एवं बाहुल्य इससे आधा अर्थात् पाव कोस प्रमाण है । इनका शेष वर्णन पूर्वोक्त नगरोंके सदृश है ||१८||
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शनि ग्रहके नगरोंकी प्ररूपणा -
चित्तोवरिम-तलादो, गंतूणं णव सारंग जोये गए । उवरि सुवण-मयाणि, सणि-णयराणि णहे होंति ॥६६॥
। ९०० ।
- चित्रा पृथिवीके उपरिम तलसे नौ सौ ( ९०० ) योजन ऊपर जाकर आकाश में शनि ग्रहों के स्वर्णमय नगर हैं ।। ९९ ।।
[ गाथा: ९८-१०२
उवरिम-तल - विक्खंभा', कोसद्ध होंति ताण पत्तेक्कं ।
सेसाओ वाओ, पुथ्व पुराणं सरिच्छाओं ॥ १०० ॥
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श्रथं- उनमें से प्रत्येक शनि नगरके उपरिम तलका विस्तार अर्ध कोस प्रमाण है। इनका शेष वर्णन पूर्वोक्त नगरोंके सदृश ही है || १०० ॥
अवशेष ८३ ग्रहोंकी प्ररूपणा -
अवसेलाण गहाणं, जयश्री उवरि चित्त-भूमीदो ।
गंतून बुह सगीणं, विश्चाले होंति णिच्चाओ ।। १०१ ।।
- श्रवशिष्ट ( ३ ) ग्रहोंकी नित्य ( शाश्वत ) नगरियां चित्रा पृथिवीके ऊपर जाकर बुध ग्रहों और शनि ग्रहों के अन्तरालमें अवस्थित हैं ।। १०१ ॥
१. द. ज. बहलब ।
विशेषार्थ -- गाथा १५ से २२ तक अर्थात् आठ गाथाथों में बुधको आदि लेकर ८८ ग्रहोंके नाम दर्शाये गये हैं । इनमेंसे बुध, शुक्र, गुरु, मंगल और शनि ग्रहोंका वर्णन ऊपर किया जा चुका है । शेष ८३ ग्रहोंका अवस्थान चित्रा पृथिवीसे ऊपर जाकर बुध और शनि ग्रहोंके अन्तराल अर्थात् ८८८ योजनसे ९०० योजनके बीचमें है ।
ताणि यर-तलारिंग, जह जोग्गुद्दिट्ठ-वास बहलागि ।
उताण - गोलकद्धोवमाणि बहु रयण मइयाणि ॥ १०२ ॥
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