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गाथा ! ८२-८६ ] पचमो महाहियारी
[ २६१ अर्थ –सिंह हाथी, बैल और जटा-युक्त घोड़ेके रूपको धारण करनेवाले तथा स्वर्ण सदृश वर्ण संयुक्त वे पाभियोग्य देव क्रमशः पूर्वादिक दिशाओं में चार-चार हजार प्रमाण विराजमान होते हैं ।।८१॥
ग्रहोंका अवस्थानचित्तोवरिम - तलादो, गंतूणं जोयणाणि अट्ठ-सए । अउसीदि-जुवे गह-गण-पुरीओ बो-गुणित-छक्क-बहलम्मि ।।२।।
।८८८ । १२ । मर्थ-चित्रा पृथिवीके उपरिम तलसे आठ सौ अठासी (465 ) योजन ऊपर जाकर बारह ( १२) योजन प्रमाण बाहल्य में ग्रह-समूह की नगरियाँ हैं ।।२।।
बुध-नगरोंकी प्ररूपणाचित्तोरिम-तलादो, पुचोरिद-जोयणाणि गंतूणं ।
तासु बुह-गयरोओ, णिचं चेति गयणम्मि ॥८३।।
अर्थ – उनमें से चित्रा पृथिवीके उपरिम-तलसे पूर्वोक्त आठ सौ अठासी योजन ऊपर जाकर आकाश में बुधकी नगरियाँ नित्य स्थित हैं ।।३।।
एवानो सब्यायो, कणयमईयो य मंब-किरणाम्रो ।
उत्ताणावट्टिद - गोलकद्ध - सरिसाओ णिच्चायो ।४।। पर्थ-ये सब नगरियाँ स्वर्णमयी, मन्द किरणोंसे संयुक्त, नित्य और ऊर्ध्व अवस्थित अर्धगोलक सदृश हैं ॥४॥
उरिम - तलाण रुबो, कोसस्सद्ध तदद्ध-बहलतं ।
परिही दिवड्ड - कोसो, सविसेसा ताण पत्तेक्कं ॥८५।। प्रध-उनमेंसे प्रत्येकके उपरिम तलका विस्तार अर्ध कोस, बाहल्य इससे आधा और परिधि डेढ़ कोससे कुछ अधिक है ।।५।।
एक्केक्काए पुरीए, तड-वेदी पुव्य-धण्णणा होदि ।
तम्मज्झे बर - वेदी - जुत्तं रायंगणं रस्म ॥८६।।
अर्ष-प्रत्येक पुरीकी तट-वेदी पूर्वोक्त वर्णनासे युक्त होती है । उसके बीचमें उसम वेदीसे संयुक्त रमणीय राजाङ्गण स्थित रहता है ।।६।।