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________________ २६० ] तिलोय पणती रायंगण बाहिरए, परिवाराणं हवंति पासादा | वर - रयण भूमिदाणं, फुरंत तेयाण सव्वाणं ॥७६॥ - - अर्थ - उत्तम रत्नों से विभूषित धौर प्रकाशमान तेज को धारण करने वाले समस्त परिवारदेवों के प्रासाद राजाङ्गरण के बाहर होते हैं ||७९|| सूर्य विमान वाहक देवोंके आकार एवं उनकी संख्या सोलस - सहरसमेत्ता, प्रभिजोग-सुरा हवंति पत्तेषक । दिrयर-यर- तलाई, विकिरिया - हारिणो' णिच्वं ॥ ८० ॥ · । १६००० 1 अर्थ -- प्रत्येक सूर्यके सोलह (१६००० ) हजार प्रमाण श्रभियोग्य देव होते हैं जो नित्य ही विक्रिया करके सूर्य नगरतलोंको ले जाते हैं ||50|| सेवावि- दिसासु, केसरि करि सह- जडिल- हय-हवा । च च सहस्समेत्ता, कांचण वण्णा विराजते ॥८१॥ सूर्य विमान १. द. ब. क. ज. कारिणो । [ गाथा : ७९-८१ " बाहल्य २४/६१ व्यास ४८ /६१ १२००० किरणें ! 1 . : ----------
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
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