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तिलोयपणत्ती
[ गाथा : ४८-५३ अर्थ-उन जिन-भवनोंमें तीन छत्र, सिंहासन, मामण्डल और चामरोंसे संयुक्त रत्नमयो जिन-प्रतिमाएं विराजमान हैं ॥४७॥
सिरिदेवी सुददेवी, सव्वाण सणक्कुमार-जक्खाणं'।
रूवाणि मण - हराणि, रेहति जिणिद - पासेसु॥४॥
अर्थ जिनेन्द्र बिम्बके पार्वमें श्रीदेवी, श्र तदेवी, सर्वाहयक्ष और सनत्कुमार यक्षकी मनोहर मूर्तियाँ शोभायमान होती हैं ।।४८!
जल-गंध-कुसुम-तंडुल-वर-भक्ख-पदीव-धूव-फल-पुण्णं ।
कुवंति ताण पुज्ज, णिभर - भत्तीए सव्व - सुरा ॥४६॥
अर्थ-सब चन्द्र देव गाढ भक्तिसे उन जिनेन्द्र प्रतिमाओं की जल, गन्ध, तन्दुल, फूल, उत्तम नैवेद्य, दीप, धूप और फलोंसे पूजा करते हैं ।।४९।।
चन्द्र-प्रासादोंका वर्णनएवाणं कडाणं, समतदो होंति चंद - पासादा।
समचउरस्सा दोहा, णाणा - विण्णास - रमणिज्जा ॥५०॥
अर्थ-इन कूटोंके चारों ओर समचतुष्कोण लम्बे और अनेक प्रकारके विन्याससे रमणीय चन्द्रोंके प्रासाद होते हैं ।।१०।।
मरगय-वण्णा केई, केई कुवेंदु-हार-हिम-धण्णा ।
अपरणे सुवण्ण-वण्णा, प्रवरे वि पवाल-णिह-वण्णा ॥५१॥ अर्थ इनमें से कितने ही प्रासाद मरकतवर्ण वाले, कितने ही कुन्दपुष्प, चन्द्र, हार एवं बर्फ जैसे वर्णवाले; कोई स्वणं सदृश वर्णवाले; और दूसरे ( कोई } मुंगे सदृश वर्णवाले हैं ।। ५१॥
उययाव-मंदिराई, अभिसेय-घराणि भूसण-गिहाणि ।
मेहुण-कोडण-सालाओ भंत - अस्थाण - सालानो ॥५२॥
अर्य-इन भवनोंमें उपपाद मन्दिर, अभिषेकपुर, भूषणगृह, मैथुनशाला, क्रीड़ाशाला, मन्त्रशाला और प्रास्थान-शालाएँ ( सभाभवन ) स्थित है ।।५।।
ते सवे पासादा, वर-पायारा विचित्त-गोउरया ।
मरिण-तोरण-रमणिज्जा, जुत्ता बहुचिन-भित्तीहि ॥५३॥ १. ६. क. रज्जाएं। २. द. ब. क. ज. भित्तीप्रो ।