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तिलोदगणपती
उत्ताणावद्विद-गोलकद्ध' सरिसाणि ससि-मणिमयाणि । ताणं पुह पुहु बारस - सहस्स- सिसिरतर-मंद-किरणाणि ॥ ३७॥
[ गाथा : ३७-४०
। १२००० ।
श्रथं चन्द्रों के मणिमय विमान उत्तानमुख अर्थात् कर्ध्वमुखरूपसे अवस्थित अर्ध गोलक सहा हैं। उनकी पृथक्-पृथक् बारह ( १२००० ) हजार प्रमाण किरणें अतिशय शीतल एवं मन्त्र हैं ||३७||
विशेषार्थ – जिसप्रकार एक गोले ( गेंद ) के दो खण्ड करके उन्हें ऊर्ध्वमुख रखा जावे तो चौड़ाईका भाग ऊपर और गोलाईवाला संकरा भाग नीचे रहता है । उसीप्रकार ऊर्ध्वमुख अर्धगोलेके सदृश चन्द्र विमान स्थित है। सभी ज्योतिषी देवोंके विमान इसीप्रकार उत्तानमुख अवस्थित हैं ||
तेसु ठिद- पुढवि-जीवा, जुत्ता उज्जोव कम्म उदएणं ।
जम्हा तुम्हा ताणि, फुरंत सिसिरयर- मंद-किरणाणि ||३८||
अर्थ
- उन ( चन्द्रविमानों ) में विद्यमान पृथिवीकाधिक जीव उद्यांत नामकर्मके उदयसे संयुक्त हैं अतः वे प्रकाशमान् अतिशय शीतल और मन्द किरणोंसे संयुक्त होते हैं ||३८|| एक्कट्ठी - भाग-कदे, जोयणए तारा होदि छप्पण्णा । उघरिम-तला संवं, तबद्ध' बहलं पि पत्तेक्कं ॥३६॥
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। ५६ । ३६ ।
अर्थ :- एक योजनके इकस भाग करने पर उनमें से छप्पन भागोंका जितना प्रमाण है, उतना विस्तार उन चन्द्र विमानोंमेंसे प्रत्येक चन्द्र विमानके उपरिम तलका है और बाहुल्य इससे आधा है ||३९||
एदाणं परिही, पुह पुह बे जोयणाणि अदिरेको ।
ताणि अकिट्टिमाणि, अणाइणिहणाणि बिबाणि ॥४०॥
अर्थ :- इनकी परिधियाँ पृथक् पृथक् दो योजनसे कुछ अधिक हैं। वे चन्द्र बिम्ब अकृत्रिम एवं अनादिनिधन हैं ॥४०॥
विशेषार्थ :- प्रत्येक चन्द्र विमान का व्यास १६ योजन और परिधि २ योजन ३ कोस, कुछ कम १२२५ धनुष प्रमाण है ।
१. द. ब. गोलगट २. द. ब. क. ज दलद्ध 1