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________________ - - - - - - २५० ] तिलोयपण्णत्ती [ गाथा : २७-३१ चिताओ सादीप्रो, होति विसाहाणुराह - जेट्टायो । मूलं पुव्वासाढा, तत्तो वि य उत्तरासाढा ॥२७॥ अभिजी-सवण-धणिट्ठा, सदभिस-णामाओ पुनभद्दपदा । उत्तरभद्दपदा रेवदीओ तह अस्सिणी भरणी ॥२८॥ अर्थ-कृत्तिका, २रोहिणी, ३मृगशीर्षा, ४ार्दा, ५पुनर्वसु, ६ पृष्य, ७अाश्लेषा, मघा, ९पूर्वाफाल्गुनी, १०उत्तराफाल्गुनी, ११हस्त, १२चित्रा, १३स्वाति, १४विशाखा, १५अनुराधा, १६ज्येष्ठा, १७मूल, १८पूर्वाषाढ़ा, १९उत्तराषाढ़ा, २०अभिजित्, २१श्रवण, २२धनिष्ठा, २३शत. भिषा, २४पूर्वभाद्रपदा, २५उत्तराभाद्रपदा, २६रेवती, २७अश्विनी और २८भरणी ये उन नक्षत्रों के नाम हैं ।।२६-२८॥ समस्त नक्षत्रोंवा प्रमाणदुग-इगि-तिय-ति-ति-गवया, एक्का ठाणेसु णवसु सुष्णारिंग । चउ-टु-एक्क-तिय-सत्त - वय - गयणेक्क अंक - कमे ।।२६।। एदेहि गुणिव - संखेज्ज - रूघ - पदरंगलेहि भजिदूर्ण । सेडि - कदो सच - हदे, परिसंखा सव्य - रिक्खाणं ॥३०॥ 5 ! १०९७३१८४०००००००००१९३३३१२ । अर्थ-दो, एक, तीन, तीन, तीन, नौ, एक, नौ स्थानोंमें शून्य, चार, पाट, एक, तीन, सात, नो, शून्य और एक, इस अंक ऋमसे जो संख्या उत्पन्न हो उससे गुरिणत संख्यात रूप प्रतरांगुलोंका जगच्ट्रेणीके वर्गमें भाग देनेपर जो लब्ध प्राप्त हो उसे सातसे गुणा करनेपर सब नक्षत्रोंकी संख्याका प्रमाण [ { जगच्छ्रेणी ( संख्यात प्रतरांगुल }x(१०९७३१८४००००००००० १९३३३१२) }x ७ ] होता है ।।२९-३०॥ एक चन्द्र सम्वन्ध ताराओंका प्रमाणएक्केषक - मयंकाणं, हवंति ताराण कोडिकोडीयो। छावट्ठि-सहस्साणं, रणव - सया पंचहत्तरि - जुदाणि ॥३१॥ ६६९७५००००००००००००००। अर्थ-एक एक चन्द्रके छयासठ हजार नौ सौ पचहत्तर-कोडाकोड़ी तारागण होते
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
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