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गाथा : २३-२६ ] पंचमो महाहियारो
[ २४९ ५८दिससंस्थित, ५९विरत, ६०वीतशोक, ६१निश्चल, ६२प्रनम्ब, ६३भासुर, ६४स्वयंप्रभ, ६५विजय, ६६वैजयन्त, ६७सीमङ्कर, ६८अपराजित, ६६जयन्त, ७० विमल, ७१अभयंकर, ७२विकस, ७३काष्ठी, ७४विकट, ७५कज्जली, ७६अग्निज्वाल, ७७अशोक, ७८केत, ७९क्षीरस, ८० अघ, श्रवण, ८२जलकेतु, ८३ केतु, ८४अन्तरद, ८५एकसंस्थान, ८६मश्व, ८७ भावग्रह और अन्तिम ८८महाग्रह, इसप्रकार ये अठासी ग्रह हैं ।।१५-२२।।
सम्पूर्ण ग्रहोंकी संभ्याका प्रमाणछप्पण छक्क छक्क, छण्णव सुण्णाणि होति' दस-ठाणा । दो - व - पंचय - छक्क, अट्ठ-चऊ-पंच-अंक-कमे ॥२३॥ एदेण गुणिद - संखेज्ज - रूव - पदरंगुलेहि भजिदूणं । सेढिकदो एक्कारस-हदम्मि सवग्गहाण परिमाणं ॥२४॥
१ ५४८६५९२००००००००००९६६६५६ । अर्थ -छह, पाँच, छह, छह, छह, नौ, दस स्थानोंमें शून्य, दो, नौ, पांच, छह, पाठ, चार और पांच, इस अङ्क-क्रमसे जो संख्या उत्पन्न हो उससे गुणित संख्यातरूप प्रतरांगुलोंका जगच्छणीके वर्ग में भाग देनेपर जो लब्ध प्राप्त हो उसे ग्यारहसे गुणित करनेपर सम्पूर्ण ग्रहोंका प्रमाण [{ज. श्रे. ( सं० प्रतरांगुल ) - ( ५४८६५९२००००००००००९६६६५६ )} x ११ ] होता है ।।२३-२४॥
नोट-गाथा ११ से १४ और २३-२४ में संदृष्टि रूपसे स्थापित चन्द्र-सूर्यादि ज्योतिषी देवोंका यह प्रमाण कैसे प्राप्त किया गया है ? इसे जानने का एक मात्र साधन त्रिलोकसार गा० ३६१ की टीका है, अतः वहां जानना चाहिए।
एक-एक चन्द्र के नक्षत्रोंका प्रमाण एवं उनके नामएक्केक - ससंकाणं, अट्ठावीसा हुवंति णक्खत्ता ।
एदाणं गामाई, कम - जुत्तीए पहवेमो ॥२५॥ प्रथ-एक-एक चन्द्रके अट्ठाईस-अट्ठाईस नक्षत्र होते हैं । यहाँ उनके नाम क्रम-युक्तिसे अर्थात् क्रमश: कहते हैं ।।२५।।
कित्तिय-रोहिणि-मिगसिर -प्रद्दानो' पुणवसुतहा पुस्सो। असिलेसादी मघमो, पुवाओ उत्तराओ हत्थो य ॥२६।।
१. ब. क. हुंति । २ द. ब. मिगतिरे। ३. व. अद्दउ ।