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गाथा : ६-९ ]
पंचमी महाहियारो
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अन्तराल है तब १९०० की ऊँचाई पर कितना अन्तराल प्राप्त होगा ? इसप्रकार वैराशिक करनेपर
फल x इच्छा - =लब्ध | अर्थात् २x१६००X२
प्रमाण
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है । जो प्रराशि १०८४ से १ यो० अधिक है ।
=
= ७६०० यो० अर्थात् १०८५३ यो० प्राप्त होता
सब ग्रहों में शनि ग्रह सर्वाधिक मन्दगतिवाला है, यदि इसकी तीन योजन ऊंचाई गौण करके मंगलग्रहकी ऊँचाई पर्यन्त इच्छा राशि ( १०००+७९०+१०+०+४+४+३+३+३) - १८९७ यो० ग्रहण को जाय तो लब्धराशि ( *XX SE७ ) = १०८४ योजन प्राप्त हो जाती है । ( यह विषय विद्वानों द्वारा विचारणीय है ) ।
रविसेसो पुग्नावर दगउतरे भागे । अंतरमत्थि सि ण ते, छिवंति जोइग्गणा वाऊ ॥ ८ ॥
अर्थ-विशेष इतना है कि पूर्व पश्चिम, दक्षिण और उत्तर भागोंमें अन्तर है । इसलिए ज्योतिषी देव उस घनोदधि वातवलयको नहीं छूते हैं ॥८॥
विशेषार्थ - - गाथा ७ में कहा गया है कि ज्योतिषी देव लोकके अन्तमें घनोदधि वातवलय का स्पर्श करते हैं और गाथा में स्पर्शका निषेध किया गया है । इसका स्पष्टीकरण यह है कि लोक दक्षिण-उत्तर सर्वत्र ७ राजू चौड़ा है अतः इन दोनों दिशाओं में तो इन देवों द्वारा वातवलयका स्पर्श हो ही नहीं सकता | इसका विवेचन गा० १० में किया जा रहा है। पूर्व-पश्चिम स्पर्शका विषय भी इस प्रकार है कि मध्यलोकमें लोककी पूर्व-पश्चिम चौड़ाई एक राजू है वहाँ ये देव घनोदधिवातबलयका स्पर्श करते हैं, क्योंकि गाथा ५ में इनका निवासक्षेत्र अगम्यक्षेत्र से रहित राजू राजू ११० घन योजन प्रमाण कहा गया है । किन्तु जो ज्योतिषी देव चित्राके उपरिम तलसे ऊपर-ऊपर हैं वे पूर्व-पश्चिम दिशाओं में भी वातवलयका स्पर्श नहीं करते। इसे ही गाथा ९ में दर्शाया जा रहा है |
पूर्व-पश्चिम दिशामें अन्तरालका प्रमाण
goaावर विचचालं, एक्क सहस्सं बिहत्तरम्भहिया । जोयणया पत्तेक्कं रूवस्सासंखभाग परिहीणं ॥६॥
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१०७२ |रिए १ रि
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अर्थ - पूर्व-पश्चिम दिशाओंमें प्रत्येक ज्योतिषी- बिम्बका यह अन्तराल एक योजन असंख्य भाग होन एक हजार बहत्तर (१०७२ ) योजन प्रमाण है ||९ ॥