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तिलोयपात्ती
[ गाथा : ७ क्षेत्रफल प्राप्त हुआ। "खेत्तफलं वेह-गुणं खादफलं होइ सब त्य" ।।१७॥ त्रि. सार के नियमानुसार क्षेत्रफलको ऊँचाईसे गुणित करनेपर अगम्य क्षेत्रका प्रमाण (eg x १२१४२४12) = १३०३२९२५०१५ धन योजन प्राप्त होता है। गाथा ६ में धन-योजन न कहकर मात्र योजन कहे गये हैं, जो विचारणीय हैं ।
। निबासा माग समाप्त हुँच ॥१५॥ ज्योतिषदेवोंके भेद एवं वातवलयसे उनका अन्तरालचंदा दिवायरा गह-णक्खत्ताणि पपण-तारानो। पंच - विहा जोदि - गणा, लोयंत घणोदहि पुट्ठा ।।७॥
11 = प्र , फ२ । इ १६०० । ल १०८४ ।। अर्थ-चन्द्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र और प्रकीर्णक तारा, इसप्रकार ज्योतिषी देवों के समूह पांच प्रकारके हैं। ये देव लोकके अन्त में घनोदधि वातवलयको स्पर्श करते हैं ।।७।।
विशेषार्थ -संद्दष्टिका स्पष्ट विवरण= जगत्प्रतर का चिह्न है। प्र प्रमाण है । यहां प्रमाण राशि ३६ रज्जू है। , यह रज्जू शब्द का चिह्न है और ये ३३ रज्जू हैं । ' फल है । यहाँ फल राशि : २ अर्थात् २ रज्जू है।
इच्छा है । जो १९०० योजन है । अर्थात् चित्रा पृथिवी एक हजार योजन मोटी है और ज्योतिषी देवों को अधिकतम ऊँचाई चित्राके उपरिम तलसे ९०० योजन की ऊंचाई पर्यन्त है अतः { १००० +९००) = १६०० योजन इच्छा है । ल लन्ध है । जो १०८४ योजन है । शंका-१०८४ योजन लब्ध कैसे प्राप्त होता है ?
समाधान-अर्वलोक, मध्यलोकके समीप एक राजू चौड़ा है और ३३ राजूकी ऊंचाई पर ब्रह्मालोक के समीप ५ राजू चौड़ा है । एक राजू चौड़ी त्रस नाली छोड़ देनेपर लोकके एक पार्श्वभागमें ( ३३ राजूपर ) दो राजका अन्तराल प्राप्त होता है । ज्योतिषी देव मध्यलोकसे प्रारम्भकर १९०० योजनयी ऊँचाई पर्यन्त ही हैं अतः जबकि राजू की ऊंचाई पर (एक पार्श्वभागम) २ राजू
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