________________
माया : ९७-९९ ] पंचमो महाहियारो
[ २३९ संखेज्ज - जोयणाणि, संखेज्जाऊ य एषक-समयेरणं । जादि असंखेज्जाणि, तारिण असंखेज्ज - आऊ य ॥१७॥
। सत्ति-परूवणा समसा ॥११॥ अर्थ-संख्यात वर्ष प्रमाण आयुवाला व्यन्तरदेव एक समय में संख्यात योजन और असंख्यात वर्ष प्रमाण प्रायवाला वह देव असंख्यात योजन जाता है ।।१७।।
शक्ति-प्ररूपणा समाप्त हुई ।।११।।
व्यन्त रदेवोंके उरसेधका कथन-- अट्ठाण वि पत्तषक, किणर-पहुदीण वैतर-सुराणं । उच्छेहरे गादत्रो, बस - कोवंडं पमाणेरणं ॥६॥
उच्छेह-परूवणा समत्ता ॥१२॥ अर्थ-किन्नर आदि पाठों श्यन्तरदेवोंमेंसे प्रत्येककी ऊंचाई दस धनुष प्रमाण जाननी चाहिए ।।६८॥
उत्सेध-प्ररूपणा समाप्त हुई ॥१२॥
ज्यन्तरदेवोंको संख्याका निरूपणचउ-लक्खाधिय-तेवीस-कोडि-अंगुलय-सूइ-बग्गेहि । भजिदाए सेढीए, बग्गे भोमाण परिमाणं ॥६॥
३ । ५३०८४१६०००००००००० |
संखा समत्ता ॥१३॥ अर्थ तेईस करोड़ चार लाख सूच्यंगुलोंके वर्गका जगले पीके वर्गमें अर्थात् ६५५३६४८१४१० शून्य रूप प्रतरांगुलोंका जगत्प्रतरमें ( 7 ) भाग देनेपर जो लब्ध प्रावे उतना ज्यन्तरदेवोंका प्रमाण है ॥९९।।
विशेषाप-जगच्छु णीका चिह्न और जगत्प्रतरका चिह्न = है तथा एक सूच्यगुलका चिह्न २ और सूच्यंगुलके वर्गका चिह्न (२४२-४) होता है, अतः संदृष्टिके F चिह्नका अर्थ है जगत्प्रतर में ५३०८४१६०००००००००० प्रतरांगुलोंका भाग देना ।
एक योजनमें ७६८००० अंगुल होते हैं प्रतः ३०० योजनों में (७६८००० x ३००-) २३०४००००० अंगुल हुए । इनका वर्ग करनेपर (२३०४०००००)२५५३०८४१६००००००००००