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गाथा : ८८-९१ ] पंचमो महाहियारो
[ २३७ अर्थ-किन्नर ग्रादि व्यन्तर देव तथा देवियां दिव्य एवं अमृतमय प्राहारका उपभोग मनसे ही करते हैं, उनके कवलाहार नहीं होता ।1८७।।
पल्लाउ-जुदे देथे, कालो असणस्स पंच विवसाणि । दोषिण च्चिय गाववो, दस-यास-सहस्स-आउम्मि ।।८।।
पाहार-परूवणा समत्ता ।।८।। अर्थ-पल्यप्रमाण आयुसे युक्त देवोंके आहारका काल पाँच दिन ( बाद ) और दस हजार वर्ष प्रमाण आयुवाले देवोंके आहारका काल दो दिन ( बाद ) जानना चाहिए ।।८।।
प्राहार-प्ररूपणा समाप्त हुई ।।८।।
उच्छ्वास निरूपणपलिदोषमाउ-जतो, पंच-मुहुत्तेहि एवि उस्सासो । सो अजुबाउ-अवे वेतर • वेवम्मि अ सत्त पाणेहिं ॥८६॥
उस्सास-परूवणा समत्ता ॥६॥ अर्थ-व्यन्तर देवोंमें जो पल्यप्रमाण आयुसे युक्त हैं वे पांच मुहूर्तों ( के बाद ) में और जो दस हजार वर्ष प्रमाण प्रायुसे संयुक्त हैं वे सात प्राणों ( उच्छ्वास-निश्वास परिमित काल विशेषके बाद ) में हो उच्छ्वासको प्राप्त करते हैं ।।८।।
। उच्छ्वास-प्ररूपणा समाप्त हुई ।।९।।
ध्यन्तरदेवोंके अवधिज्ञानका क्षेत्रप्रवरा प्रोहि-धरित्ती, अजुवाउ-जुदस्स पंच-कोसाणि । उक्किट्ठा पण्णासा, हेटोवरि पस्समाणस्स ॥६॥
को ५ । को ५० अर्थ-दस हजार वर्ष प्रमाण आयुवाले व्यन्तर देवोंके अवधिज्ञानका विषय ऊपर और नीचे जधन्य पांच (५) कोस तथा उत्कृष्ट पचास ( ५०) कोस प्रमाण है ॥६०14
पलिदोवमाउ-जुत्तो, बेंतरदेवो तलम्मि उरिस्मि । अवहीए जोयणाणि, एक्कं लक्खं पलोएवि ॥११॥
१००००० प्रोहि-गाणं समत्तं ॥१०॥