________________
तिलोयपणती
[ गाथा ! ८४-८७ इंद-पडिइंद-सामारिणयाण • पत्तक्कमेक्क - पल्लाऊ ।
गणिका-महल्लियाणं, पल्लद्धं सेसयाण जह-जोग्गं ॥४॥ अर्थ-इन्द्र, प्रतोन्द्र एवं सामानिक देवोंमेंसे प्रत्येककी आयु क्रमशः एक-एक पल्प है। गणिकामहत्तरियों की आयु अर्धपल्य और शेष देवोंको आयु यथायोग्य है ।।४।।
बस वास-सहस्साणि, प्राऊ णीचोयवाद - देवाणं । तत्तो जाव असीदि, तैत्तियमत्ताए यडीए ॥१५॥ अह चलसीवी पल्लट्ठमंस - पावं' कमेण पल्लद्धं । दिवासि - पहदीणं, भरिणवं प्राउस्स परिमाणं ॥८६॥ १०००० । २०००० १ ३००००। ४०००० । ५०००० १६०००० । ७०००० ! ८०००० । १४००० | प|प।
८४२
आऊपरूवणा समत्ता ॥७॥
अर्थ-नीचीपपाद देवोंकी आयु दस हजार वर्ष है। पश्चात् दिग्बासी आदि प्रोष (७) दवोंकी आयु क्रमश: दरा-दस हजार वर्ष बढ़ाते हुए अस्सी हजार वर्ष पर्यन्त है । शेष चार देवोंकी आयु क्रमशः चौरासी हजार वर्ष पल्यका आठवां भाग, पल्यका एक पाद ( चतुर्थ भाग) और अर्धपल्य प्रमाण कही गई है ।।८५-८६॥
विशेषा-नीचोपपाद भ्यन्तर देवोंकी आयुका प्रमाण १०००० वर्ष, दिवासीका २०००० वर्ष, अन्तरवासोका ३०००० वर्ष, कूष्माण्डका ४०००० वर्ष, उत्पन्न का ५०००० वर्ष, अनुत्पन्नका ६०००० वर्प, प्रमाणकका ७०००० वर्ष, गन्धका ८०००० वर्ष, महागन्धका ८४००० वर्ष, भुजङ्ग देवोंका पल्यके आठवें भाग, प्रीतिकका गल्यके चतुर्थभाग और आकाशोत्पन्न देवोंकी आयु का प्रमाण पल्यके अर्धभाग प्रमाण है ।
। इसप्रकार प्रायु-प्ररूपणा समाप्त हुई ॥७॥
व्यन्तर देवों के प्राहारका निरूपणदिवं प्रमन्नाहारं, मणेण भुजति किंणर-प्पमुहा । देवा देवीओ तहा, तेसु कवलासणं णस्थि ।।७।
१. द. ब. पादक्कमेण, क, पादकमे 1