SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 303
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गाया : . ] पंचमो महाहियारो [ २३५ २०००० २०००० २०००० irrrrror २०००० २०००० १०००० १०००० १०००० दक्षिण-उत्सर-इंदाणं परूषणा समत्ता ।।६।। अर्थ-नीचोपपाद देव पृथिवीसे एक हाथ प्रमाण ऊपर निवास करते हैं। उनके ऊपर दिग्वासी, अन्तरनिवासी, रुप्माण्ड, उत्पन्न, अनुत्पन्न, प्रमाणक, गन्ध, महागन्ध, भुजंग, प्रीतिक और बारहवें आकाशोत्पन्न, इन्द्र के ये परिवार-देव क्रमश: ऊपर-ऊपर निवास करते हैं। इनमेंसे प्रारम्भ तीन प्रकारके देव नीचोपपाद देवों के स्थानसे उत्तरोत्तर दस-दस हजार हस्त प्रमाण अन्तरसे तथा शेष देव बीस-बीस हजार हस्तप्रमाण अन्तरसे निवास करते हैं ।।८०-८२।। विशेषार्थ-चित्रा पृथिवीसे एक हाथ ऊपर नीचोपपादिक देव स्थित हैं। इनसे १०००० हाथ ऊपर दिग्वासी देव हैं । इनसे १०००० हाथ ऊपर अन्तरवासी और इनसे १०००० हाथ ऊपर वाष्माण्ड देव निवास करते हैं । इनसे २०००० हाथ ऊपर उत्पन्न इनसे २०००० हाय ऊपर अनुत्पन्न, इनसे २०००० हाथ ऊपर प्रमाणक, इनसे २०००० हाथ ऊपर गन्ध, इनसे २०००० हाथ पर महागन्ध, इनसे २०००० हाथ ऊपर भुजङ्ग, इनसे २०००० हाथ ऊपर प्रीतिक और इनसे २०००० हाय ऊपर पाकाशोत्पन्न व्यन्तरदव निवास करते हैं। यही इनकी विन्यासरूप संदृष्टि है। इसप्रकार दक्षिण-उत्तर इन्द्रोंकी प्ररूपणा समाप्त हुई ।।६।। व्यन्तरदेवोंको प्रायुका निर्देशउक्कस्साऊ पल्लं, होदि असंखो य मज्झिमो आऊ । बस वास - सहस्साणि, भोम्म - सुराणं जहणणाऊ ॥३॥ प १ । रि । १०००० । अर्थ-व्यन्तरदेवोंको उत्कृष्ट आयु एक पल्य प्रमाण, मध्यम आयु असंख्यात वर्ष प्रमाण और जघन्यायु दस हजार ( १७०००) वर्ष प्रमाण है ।।३।।
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy